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जोधपुर. दुनिया में मशहूर सोजत की मेहंदी की गुणवत्ता को मिले भौगोलिक संकेतक (जीआई टैग) के पीछे जोधपुर के राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय एसोसिएट प्रोफेसर डॉ.गार्गी चक्रवर्ती और पूर्व छात्र पंकज त्यागी की तीन साल की मेहनत छिपी है।
प्रो.चक्रवर्ती ने नवम्बर 2018 में जीआई आवेदन फाइल किया था। उन्होंने छात्र पंकज के साथ मिलकर आवेदन से लेकर टैग मिलने तक की कानूनी प्रक्रिया पूरी होने तक बिना किसी फंड या प्रोजेक्ट के काम किया। एनएलयू की रजिस्ट्रार नेहा गिरी का कहना है कि हमने सोजत की मेहंदी को उसका हक दिलाने के लिए ‘लेस परमानेंट बट मोर टेम्परेरी’ दावे के साथ मजबूती से लड़ाई लड़ी। अब सोजत की हिना पर केवल सोजत का अधिकार होगा।

दिक्कतों के बावजूद मिली कामयाबी
एनएलयू में डॉ चक्रबर्ती आईपीआर की प्रोफेसर है। जीआई टैग आवेदन में आईआइटी खडक़पुर ने तो मेहंदी की गुणवत्ता साबित करने में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग ने उनकी मदद की। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग ने साबित किया कि सोजत की मेहंदी में लॉसन कंटेंट 2.81 प्रतिशत होता है, जबकि मध्यप्रदेश की मेहंदी में 1.70 और गुजरात की मेहंदी में 1.30 प्रतिशत ही है। लॉसन कंटेंट के कारण सोजत की हिना का अधिक लाल-सुर्ख रंग लंबे समय तक बना रहता है। पूर्व छात्र पंकज कई बार किसानों को समझाने सोजत गए।

यह होगा फायदा
जीआई टैग एक तरह का पेटेंट है। इससे स्थानीय किसानों का फायदा होने के साथ सोजत की मेहंदी दुनिया के कोने-कोने तक पहुंच बना सकेगी। सोजत के नाम से मिलने वाली मिलावटी व अन्य स्थानों की मेहंदी पर भी रोक लग सकेगी।

बीकानेरी भुजिया को भी मिल चुका टैग
राजस्थान से अब तक 14 उत्पादों को भौगोलिक संकेतक (जीआई) मिल चुके हैं। इनमें जयपुर का बगरु प्रिंट, सांगानेरी प्रिंट, ब्लू पोटरी, बीकानेरी भुजिया, जोधपुर की कठपुतली, मकराना मार्बल, प्रतापगढ़ की थेवा कला व थेवा लोगो, कोटा डोरिया, फुलकरी शामिल है।

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अब तक कृषि उपज नहीं माना
सरकार मेहंदी को कृषि उपज नहीं मानकर इसे रासायनिक उत्पाद ही मानती है जिससे हमें न तो एमएसपी मिलती है और न ही कृषि बीमा का फायदा। इसकी कटाई भी बहुत महंगी है। प्रतिदिन 1500 से 2000 रुपए लग जाते हैं लेकिन फिर भी हमें खुशी है कि आज हमारी मेहंदी को विश्व पहचान मिल गई है।
– भंवरलाल सैणचा, संरक्षक, सोजत मेहंदी विकास समिति

Source: Jodhpur

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