सोम पारीक
बाड़मेर. हमें 21 वीं सदी में आए 19 साल होने को आए हैं। केंद्र सरकार हर घर को रोशन करने की बात कह रही है पर बाड़मेर जिले के गडरारोड,रामसर व शिव क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटे दर्जनों गांव पांच दिन से अंधेरे में हैं। यह पहली बार नहीं हुआ। इलाके में अंधड़ या तेज बारिश आते ही अक्सर बिजली गुल हो जाती है और कई दिन तक ग्रामीण परेशान रहते हैं।
पिछले दो दशक में केंद्र सरकार ने कई योजनाओं के माध्यम से पहले हर गांव और बाद में हर घर तक बिजली पहुंचाने का दावा किया पर हकीकत कुछ और ही है। सीमा क्षेत्र के गांवों व ढाणियों तक सड़कों का जाल बिछ गया पर बिजली अब तक नहीं पहुंची है।
महानगरों व शहरों-कस्बों में रहने वालों को भले ही अजीब लगे पर कड़वी सच्चाई यही है कि सीमावर्ती गांवों में ज्यादातर आबादी बिजली से वंचित है। दूर-दराज की ढाणियों तक कनेक्शन नहीं हुए हैं। वहां शाम ढलने के बाद महिलाएं चिमनी या दीपक की रोशनी में ही काम-काज निपटाती हैं। बच्चों को इन्ही की रोशनी में पढऩा पड़ता है।
जिन गांवों में बिजली पहुंची भी है, वहां विद्युत आपूर्ति तंत्र की नाकामी के चलते कई- कई दिन तक बिजली गुल रहती है। इससे जलापूर्ति प्रभावित होती है और पूरी रात घुप अंधेरे के साये में ही गुजरती है। भीषण गर्मी में दिन भर कूलर या पंखे की हवा का इंतजार रहता है और रात में भी लू बंद होने पर प्रकृति ही राहत देती है।
डिजिटल युग में अधिकांश ग्रामीणों के पास मोबाइल फोन हैं पर बिजली नहीं रहने से वे महज खिलौना बन जाते हैं।
सुरक्षा कड़ी करते हुए केंद्र सरकार ने लगभग 25 वर्ष पूर्व अंतरराष्ट्रीय सीमा पर तारबंदी करवा दी। यहां रात में सीमा सुरक्षा बल की गश्त व निगरानी के लिए फ्लड लाइटों की व्यवस्था की गई। इसके लिए अलग से विद्युत लाइन का बजट जारी हुआ व रख-रखाव को भी राशि जारी होती है पर स्थिति ठीक नहीं है।
फ्लड लाइट की आपूर्ति भी सुचारू नहीं रहती। मजबूरन सीमा सुरक्षा बल को उच्च शक्ति के जनरेटरों की मदद से रात को विद्युत आपूर्ति बहाल रखनी पड़ती है। राष्ट्रीय सुरक्षा को ताक पर रखते हुए इस लाइन से कृषि कनेक्शन जारी कर दिए गए हैं।
सरकार ने सीमावर्ती गांवों के विद्युतीकरण के लिए अरबों रुपए खर्च किए हैं पर डिस्कॉम के अधिकारियों व कार्मिकों की लापरवाही के चलते ग्रामीण बिजली जैसी बुनियादी सुविधा से भी वंचित हैं। जिले के गडरारोड, रामसर व शिव के दूर दराज के गांवों में एक बार बिजली चली जाए तो कब आएगी कोई नहीं जानता।
यहां विद्युततंत्र में जरूरत के मुताबिक अलग-अलग क्षमता की लाइनें व जीएसएस नहीं हैं। मीलों लंबी लाइनों के रख-रखाव को जरूरत के मुताबिक लाइनमैन व अभियंता नहीं हैं। हालात ये हैं कि जरूरत का मामूली सामान लेने के लिए भी 150 किमी दूर बाड़मेर आना पड़ता है।
डिस्कॉम ने इलाके की जरूरत के मुताबिक पद ही सृजित नहीं किए हैं। स्वीकृत में से अधिकांश पद खाली हैं। अभियंताओं व तकनीकी स्टॉफ की नियुक्ति होती है पर दुर्गम स्थल होने के कारण अधिकांश लोग यहां काम नहीं करना चाहते और जैसे- तैसे यहां से स्थानांतरण करवा लेते हैं।
फिलहाल, तूफानी बारिश के बाद पांच दिन से जिले के सैकड़ों गांवों में बिजली नहीं है। डिस्कॉम के अधिकारी तो कार्मिकों की कमी की दुहाई दे रहे हैं पर इससे वे अपनी जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो सकते। आम आदमी की गाढ़ी कमाई के अरबों रुपए खर्च कर तैयार किए विद्युत तंत्र में जरूरत के मुताबिक सुधार, परिवर्तन व नवीनीकरण की जिम्मेदारी उन्ही की है।
आजादी के दशकों बाद भी बिजली जैसी मूलभूत सुविधा से वंचित ग्रामीणों को निर्बाध विद्युत आपूर्ति से ही सही मायने में सच्चे लोकतंत्र का अहसास करवाया जा सकता है।
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Source: Barmer News