ये लोग पीते है इतना खारा पानी, जो जानवर भी नहीं चखे
– उम्र गुजार दी तेरे वादों पर, कैसे ऐतबार करें अब बातों पर…
लगातार….
बाड़मेर पत्रिका.
पत्ते का पार की नबीयत की उम्र 74 साल है और उसके पास खड़ी होकर बात कर रही रुखसार ने 80 की। अब दोनों के लिए सिर पर मटकी उठाना संभव नहीं है लेकिन नबीयत कहती है जब तक ताकत थी..मीलों पानी लाने में ही उम्र गुजर गई। हर बार वोट देने जाते तो यह कहा जाता कि पानी रो प्रबंध थीसै रो… हमकी सरकार आवते ही मीठो पाणी घरां तक पुगसै.. उम्र बीती री..हमै म्हनै तो सैंग कूड़ा लगै..पाणी भीख खारो जैर आएं (खारा जहर से भी बदत्तर) है।
दरअसल बाड़मेर जैसलमेर के 74 गांवों को इस इलाके में बदइंतजामियों का दौर आजादी के करीब 75 साल से ऐसा ही है। इंदिरा गांधी नहर जैसलमेर में 1980 के दौर में आ गई और आगे गडरारोड़ तक लाना था,लेकिन वर्ष 2005-06 में रोक दी गई। नर्मदा नहर 2008 में बाड़मेर में प्रवेश कर गई लेकिन गडरारोड़ और आगे के इलाके में अभी भी दूर की कौड़ी है। पानी की इन योजनाओं के कछुआ से भी कम रफ्तार से चलने का हर बार कारण बजट की कमी रहा है। बंधड़ा के रूपसिंह कहते है कि मैने अपनी उम्र में 20 साल की उम्र में पहना वोट दिया था और अब 74 का हुआ हूं…एक ही मांग पहली थी पानी…। सारे एमएलए-एमपी ने यही वादा किया लेकिन पूरा कोई नहीं कर सका। इसलिए,अब तो भरोसा नहीं रहा।
बालिका स्कूल का अता-पता नहीं
बेटियों को पढ़ाने को लेकर सरकार की ओर से योजनाओं का अंबार है और हर जगह यह कहा जाता है कि बेटी पढ़ाओ..यहां श्यामसिंह बंधड़ा कहते है कि गडरारोड़ को छोड़कर करीब में कहीं पर भी बालिका विद्यालय नहीं है। पांचवीं-आठवीं के स्कूल में एक दो शिक्षक है। यह पिछड़ा इलाका है। यहां पर लंबी दूरी पर ढाणियां है, इसलिए बेटियों को स्कूल आने जाने की दिक्कत रहती है। बालिका स्कूल ग्राम पंचायत मुख्यालय पर खोले जाए तो बेटियों की पढ़ाई हों।
मोबाइल इसलिए जरूरी है
ग्रामीणों ने बताया कि बीते साल रणछोड़सिंह नाम के एक व्यक्ति की मृत्यु हर्ट अटैक से हो गई। परिवारजनों को पता ही नहीं चला कि खेत में कहां है? खेत से रवाना हो गए थे। रात में देर तक तलाश बाद किसी धोरे के पास मृत मिले। मोबाइल हों तो तुरंत संपर्क होता है।
डेंगू-कोरोना और डर
ग्रामीण दलपतसिंह कहते है कि डेंगू और कोरोना सहित वायरल बुखार में अब गांव में लगी एएनएम भी बाड़मेर जाने की सलाह देती है। एक मरीज का वहां तक जाना करीब चार से पांच हजार का खर्च करवा देता है। यहां मोबाइल हों तो हम सुविधा के लिए चिकित्सक से बात भी करें लेकिन ऐसा भी नहीं है। हारी-बीमारी में ये हालात हमें काफी परेशान करते है।
Source: Barmer News