रतन दवे
टिप्पणी
सभी राजनेता और सरकारें कहती है राजनीति सर्वजनहिताय करते है। काम भी वही होना चाहिए जो सर्वजनसुखाय हों। उस बात की पैरवी तो सबसे पहले जो सार्वजनिक हों। पक्ष-विपक्ष की विचारधाराएं ऐसे मुद्दों पर टकरानी ही नहीं चाहिए जहां एक नहीं अनेक का फायदा हों और उस बात पर तो सबको एक हो जाना चाहिए जो सर्वे भवंतु सुखिन: जैसा अहसास करवा रही हों। रेल एक ऐसा ही मुद्दा है। इसमें ऐसा कोई नहीं है जिसका भला न हों और ऐसा विरला ही होगा जिसका नुकसान हों। बाड़मेर जिले के लिए वर्ष 2004 के बाद सारी स्थितियां बदली है। तेल का खजाना, कोयले का पॉवर ्रप्रोजेक्ट, खेती किसानी में आमदनी और व्यापारिक स्थितियां..सबने इस जिले को सक्षम बनाया है। आबादी भी 30 लाख के करीब पहुंच रही है और बाहरी जिलों और राज्यों के लोगों की संख्या भी अब यहां एक से डेढ़ लाख तक हों तो अचरज नहीं होगा। विद्यार्थी पढऩे के लिए सीकर,झुंझूनू,जयपुर और अन्य राज्यों तक हजारों की संख्या में जा रहे है। इन सब स्थितियों में जिले को अब सुगम परिवहन की दरकार है। रेल से बेहतर सुविधा किसी को नहीं माना जाता है। लंबी दूरी की, सहूलियत और अनुकूलता की रेल मिले तो हर यात्री के लिए बेहद पसंदीदा बन जाती है। मालाणी एक्सपे्रस ऐसी ही रेल रही है। हर वर्ग से बात की जाए तो वो इसके कशीदे गढऩा शुरू कर देता है कि हां…यह रेल तो सबसे अनुकूल। राजनीति में पक्ष-विपक्ष दोनों तरफ के लोगों की यही बात है तो अधिकारी भी। यहां तक कि रेलवे के कार्मिक भी मानते है कि मालाणी इस जिले के लिए बेहतर रही है। जब कोई रेल जहां से संचालित हो रही है वहां के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है तो फिर सरकारों और जनप्रतिनिधियों के लिए सर्वजनहिताय इससे बड़ी क्या सुविधा होगी? इस रेल को बंद कर देने से किरकिरी तो राजनीति से जुड़े लोगों की होगी। बंद होने के बाद सबका दायित्व है कि वे एक साथ हर मंच पर इस बात को उठाए कि रेल शुरू की जाए। मालाणी क्यों, बाड़मेर का हक तो अब मुम्बई तक की रेलों के लिए है। प्रवासियों ने कितनी ही बार इसके लिए स्थानीय राजनेताओं को कहा है। करीब दो दशक से यह दुहाई दे रहे है लेकिन सुनवाई कहां? कई रेलें है जो जोधपुर में घंटों तक पड़ी रहती है और इनको बाड़मेर तक बढ़ाकर बाड़मेर से जोधपुर के बीच के यात्रियों को सुविधा दी जा सकती है। गौर करें कि आजादी के समय से पहले पाकिस्तान तक रेल चलती थी…बाद में भी चली।
Source: Barmer News