जोधपुर. भोगिशैल पहाडि़यों में मध्य जोधपुर से 17 किमी. की दूरी पर स्थित वीरान पड़े अरणा-झरणा तीर्थ स्थल में पहली बार शिव-पार्वती और मंदिर जल कुण्ड के भीतरी चट्टान पर गणेश, विष्णु, मां सरस्वती, शेषशायी विष्णु आदि की प्रतिमाएं खुदी हुई मिली हैं। ये प्रतिमाएं कुण्ड में स्थित जल स्तर घट जाने के कारण प्रकाश में आई हैं। मन्दिर परिसर के आस-पास कई शिलालेख भी हैं जो 11वीं से 13वीं शताब्दी के मध्य के हैं। प्राचीन शिव मन्दिर के पास ही स्थित जलकुण्ड के आस-पास की चट्टानों पर 16वीं शताब्दी के लेख भी खुदे मिले हैं।
8वीं 9वीं शताब्दी के मध्य का मंदिर
तीनों ओर से पहाडि़यों से घिरा अरना झरना शिवमंदिर पूर्व में हिरणेश्वर और अरणेश्वर के नाम से जाना जाता था। राजस्थानी शोध संस्थान, चौपासनी के सहायक निदेशक डॉ. विक्रमसिंह भाटी के अनुसार जोधपुर की स्थापना से पूर्व से यहां विद्यमान शिव का प्राचीन मन्दिर 8वीं 9वीं शताब्दी के मध्य का है। मन्दिर परिसर के आस-पास अलग-अलग समय के पुरावशेष व शिलालेख भी विद्यमान हैं जो हजारों वर्ष प्राचीन हैं। भगवान शिव का यह स्थान अलग-अलग समय में विभिन्न कालखण्ड में पूजित रहा है। पहाडि़यों से आने वाला बरसाती जल मन्दिर परिसर के पास ही स्थित कुण्ड में एकत्रित होता है। ऐसा कहा जाता है कि पूर्णिमा, अमावस्या तथा एकादशी के दिन इस झरने में स्नान करना तीर्थ स्नान करने के बराबर है। दंतकथा के अनुसार परमार राजा गन्धर्वसेन को कोढ़ से यहीं मुक्ति मिली थी। जिस पर उक्त राजा ने इस मन्दिर परिसर के आस-पास कई छोटे-बड़े मन्दिर बनवाए।
सभा मंडप जहां पांडवों ने किया था निवास
अरणा-झरना मन्दिर परिसर के ऊपर एक सभा मण्डप भी विद्यमान है जहाँ पाण्डवों ने भी निवास किया था। उस सभा मण्डप के एक ताक के ऊपर के छबणे में नव ग्रह खुदे हुए हैं। इसी नव ग्रह के सामने एक स्तम्भ पर 11वीं शताब्दी का शिलालेख उत्कीर्ण है जो नंदा देवी के मन्दिर का ***** है। वर्तमान में यह सभा मण्डप नष्ट होने की कगार पर है। कहा जाता है पाण्डवों ने अज्ञातवास के समय शिवजी की पूजा भी की थी।
हेरिटेज टूरिज्म की दृष्टि से महत्वपूर्ण
ऐतिहासिक महत्त्व के अरणा-झरना मन्दिर परिसर के आस-पास पुरावशेष, कीर्ति स्तम्भ, देवी-देवताओं की प्रतिमाएं और शिलालेख हेरिटेज टूरिज्म की दृष्टि से बड़े ही महत्त्वपूर्ण हैं। महाभारतकालीन, परमारकालीन सहित तीन से चार काल खण्ड की स्थापत्य कला और विभिन्न देवी देवताओं की प्रतिमाएं और तीर्थ स्थल के जलकुण्ड में रहस्मय तरीके से गौमुख में पानी की आवक सहित ऐसी कई चीजे है जो हेरिटेज टूरिज्म के लिहाज से महत्वपूर्ण है। यहां मौजूद पुरामहत्त्व के एक हजार साल पुराने अवशेष ओसियां और रणकपुर शैली के हैं जो अपने-आप में बड़े ही महत्त्वपूर्ण हैं।
भोगिशैल परिक्रमा में आते है पूरे मारवाड़ के श्रद्धालु
जोधपुर में प्रत्येक तीसरे वर्ष पुरुषोत्तम मास में आयोजित होने वाली भोगिशैल परिक्रमा के दौरान पूरे मारवाड़ से हजारों श्रद्धालु मन्दिर में दर्शन के बाद ही आगे का रास्ता तय करते हैं।
Source: Jodhpur