महेन्द्र त्रिवेदी
बाड़मेर. रेगिस्तान में भीषण गर्मी में जब अधिकतम तापमान 50 डिग्री तक पहुंच जाता है तब भी एकमात्र जाळ ही ऐसा वृक्ष है जो हरा-भरा और घना दिखाई देता है। यह तेज गर्मी में मरुधरा को प्रकृति का एक वरदान ही कहा जा सकता है। बहुपयोगी पेड़ पर गर्मी के मौसम में लगने वाले फल पीलू ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े चाव के साथ खाए जाते है। अब तो यह बाजार में भी बिक्री के लिए आते है। पीलू लाल-गुलाबी रंग के होते हैं।
जाळ वृक्ष की मरुधरा क्षेत्र में दो प्रजातियां पाई जाती है। सामान्य भाषा में खारा तथा तथा मीठा जाळ के नाम से जाना जाता है। वानस्पतिक भाषा में खारे जाळ को सैल्वेडोरा ओलिओइडीज तथा मीठे जाळ को सैल्वेडोरा पर्सिका कहा जाता है। वृक्ष के बीजों से प्राप्त तेल का उपयोग औषधियों में होता है। मीठे जाळ की टहनियों का उपयोग पम्परागत दातुन के रूप में भी किया जाता है।
जैव विविधता संरक्षण में बड़ा योगदान
प्रतिकूल परिस्थितियों में मरु प्रदेश की जैवविविधता संरक्षण में वृक्ष का सबसे महत्वपूवर्ण योगदान है। मध्यम आकार के हरे-भरे एवं सघन शाखाओं युक्त होने के कारण अत्यधिक गर्मी के मौसम में जीव-जन्तुओं, पक्षियों तथा कीट-पतंगों का आश्रय स्थल भी है। वृक्ष का तना दरारों युक्त होने के कारण इसमें सरीसृप भी निवास करते हैं। वहीं घने होने के कारण गर्मी में छाया भी मिलती है।
यहां पर वृक्ष की तादाद ज्यादा
मरुभूमि के जालोर, जैसलमेर, बाड़मेर, पाली, जोधपुर आदि जिलों में जाळ के वृक्ष बहुतायत से पाए जाते हैं। ग्रामीण के साथ शहरी क्षेत्र में भी जाळ के पेड़ मिल जाते है। वृक्ष का कुल सैल्वेडोरेसी है।
रेगिस्तान के लिए वरदान से कम नहीं
जाल का वृक्ष रेगिस्तानी इलाकों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। गर्मी के दिनों में जब तापमान ५० डिग्री तक पहुंच जाता है तब भी यह हरा-भरा रहने के साथ फल देता है। साथ ही जैव विविधता संरक्षण में पेड़ काफी महत्वपूर्ण है। जाळ के पेड़ घने होने से छायादार भी होते है।
डॉ. रिछपाल सिंह, सह-आचार्य, वनस्पति शास्त्र
राजकीय महाविद्यालय लूणी
Source: Barmer News