जोधपुर. देखने-सुनने में भले ही अजीब लगे कि कोई वकील ऐसे भी होंगे, जिन्हें मिल रही फीस से उनका स्टेशनरी का खर्चा भी नहीं मिलता, लेकिन यह हकीकत है राजस्थान की राजस्व अदालतों में पैरवी करने वाले सरकारी वकीलों को बहुत कम मानदेय मिल रहा है। अब राजस्थान हाईकोर्ट ने राजस्व न्यायालयों में नियुक्त राजकीय अधिवक्ताओं का मानदेय बढ़ाने को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार व राजस्व मंडल से जवाब तलब किया है।
न्यायाधीश विनित कुमार माथुर की एकल पीठ में याचिकाकर्ता नवल सिंह दहिया की ओर से अधिवक्ता बीएस संधू ने कहा कि राजस्व न्यायालयों में पैरवी के लिए नियुक्त राजकीय अधिवक्ताओं का मानदेय नरेगा श्रमिकों से भी कम है। अंतिम बार वर्ष 2005 में मानदेय में आंशिक बढ़ोतरी की गई थी, जो वर्तमान में इतनी कम है कि राजकीय अधिवक्ता अपना स्टेशनरी खर्च भी नहीं निकाल पाते। पिछले कई सालों से राजस्व न्यायालयों में नियुक्त राजकीय अधिवक्ता जिला न्यायालय में नियुक्त लोक अभियोजक के मानदेय के अनुरूप अपना पारिश्रमिक बढ़ाने की मांग करते आ रहे हैं, लेकिन कोई फैसला नहीं किया जा रहा।
संधू ने कहा कि राजस्व मंडल में राजकीय अधिवक्ताओं की नियुक्ति चयन समिति करती है, जबकि अधीनस्थ राजस्व न्यायालयों में राजकीय अधिवक्ताओं की नियुक्ति राजस्व ग्रुप (प्रथम) के आदेश अनुसार की जाती है। इन अधिवक्ताओं को अल्प मानदेय दिए जाने से उनके पारिवारिक भरण पोषण में भी कठिनाई हो रही है। राजकीय अधिवक्ताओं को पत्रावली की फाइलिंग, टाइपिंग, फोटोकॉपी, जवाब दावा, फैसलों की सत्यापित प्रतिलिपि और अपील संबंधित विधिक राय देने सहित कई दायित्वों का निर्वहन करना पड़ता है। हालत यह है कि इस अल्प मानदेय का भुगतान भी महीनों तक नहीं होता। एकल पीठ ने अतिरिक्त महाधिवक्ता सुनील बेनीवाल को नोटिस स्वीकार करने के निर्देश देते हुए अगली सुनवाई 11 जुलाई को मुकर्रर की है।
Source: Jodhpur