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Doctors day: जोधपुर. चिकित्सा क्षेत्र में जोधपुर धीरे-धीरे समृद्ध होता जा रहा है। यहां एम्स और डॉ. संपूर्णानंद जैसे बड़े मेडिकल कॉलेज हैं तो कई सुपर स्पेशयलिटी सेवाएं भी जल्द मिलने वाली है, लेकिन फिर भी धरती के भगवान का दबाव कम नहीं हो रहा। उसका कारण है कि मरीजों की तुलना में चिकित्सक कम होना। शहर की बढ़ती आबादी और विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक जिले व गांवों में आज भी डॉक्टर्स का टोटा हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार एक हजार की आबादी पर एक डॉक्टर होना चाहिए। जिले की 40 लाख से अधिक आबादी के अनुसार हमें 500 डॉक्टर्स की और आवश्यकता है। डॉक्टर्स की कमी के कारण सरकारी व निजी अस्पताल में मरीज कई घंटे कतारों में रहते हैं। उसके बाद डॉक्टर्स को दिखाने का नंबर आता हैं। एम्स जोधपुर व डॉ. एसएन मेडिकल कॉलेज दोनों में करीब दस से पन्द्रह फीसदी डॉक्टर्स के पद खाली पड़े हैं।

मरीज भार अत्यधिक
जोधपुर की बात की जाए तो प्रतिदिन 15 हजार से अधिक मरीज स्वास्थ्य केंद्रों, निजी व सरकारी बड़े अस्पतालों के आउटडोर में इलाज के लिए पहुंचते हैं। जबकि सर्वाधिक मरीजों का आउटडोर मथुरादास माथुर अस्पताल व एम्स जोधपुर में रहता है। एमडीएम अस्पताल में औसत ओपीडी एक दिन की करीब चार हजार तक रह चुकी हैं। शहरवासी संजीव शर्मा का कहना हैं कि निजी हो या सरकारी अस्पताल, दिखाने जाने के लिए कम से कम दो घंटे का समय लग रहा है।

तनाव में ज्यादातर डॉक्टर
– 80 फीसदी से ज्यादा डॉक्टर्स तनाव भरी जिंदगी जी रहे हैं।
– 56 फीसदी चिकित्सकों को पूरे सप्ताह सात घंटे की सुकून भरी नींद नसीब नहीं होती।
– 13 प्रतिशत डॉक्टर्स को आपराधिक अभियोग का डर सताता रहता हैं।
– 46 प्रतिशत डॉक्टर्स हिंसा की वजह से तनावग्रस्त जीवन जीते हैं।
– 57 प्रतिशत डॉक्टर्स को लगता हैं कि उन्हें अपने कक्ष के बाहर सुरक्षा के लिए पहरेदार रखने चाहिए।
(इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के एक सर्वेक्षण के अनुसार)

फैक्ट फाइल
– स्वास्थ्य विभाग- 400
– डॉ. एसएन मेडिकल कॉलेज- 1500
– एम्स जोधपुर-1000
– निजी अस्पतालों में डॉक्टर्स-750

एक्सपर्ट कमेंट
दूरदराज छोटे जिलों व गांवों में विशेषज्ञता करनी हैं डवलप
जोधपुर बड़ा शहर है। यहां लोग आसपास के जिलों व ग्रामीण इलाकों से इलाज के लिए आते हैं। डॉक्टर की कमी गांवों में है। वहां पर्याप्त संख्या में विशेषज्ञ डॉक्टर नहीं है। डब्ल्यूएचओ ने कहा कि एक हजार आबादी पर एक डॉक्टर होना चाहिए। शहर में तो तीन-चार सौ की आबादी पर एक डॉक्टर मिल जाएगा। गांवों में दो हजार की आबादी पर एक डॉक्टर है। आयुर्वेद, यूनानी सहित अन्य डॉक्टर्स भी अपना अच्छा काम करते हैं। हेल्थ केयर में अस्सी फीसदी समस्या कॉमन हैं। उसका इलाज एमबीबीएस व नर्स सहित अन्य लेवल पर हो जाएगा। इसके लिए मौजूदा डॉक्टर्स को स्किल्स डवलपमेंट व स्पेशलाइज्ड करना जरूरी है।
– डॉ. कुलदीपसिंह, एकेडमिक डीन, एम्स जोधपुर

30 साल बाद भी मरीज ठीक देख प्रफुल्लित होता हूं
एक घटना मेरे जेहन में आज भी ताजा है कि जब मैं साल 1992 में डीएम कर जोधपुर लौटा तो रात्रि में मेरे चिकित्सक मित्र का इमरजेंसी में फोन आया। एक मरीज को दिल का दौरा पड़ा। उसकी धड़कन महज 20 से 25 चल रही थी। सीपीआर कर तुरंत मरीज को महात्मा गांधी अस्पताल लाए। उसे पेसमेकर लगाया। बाद में उसके पल्स व ब्ल्ड प्रेशर सभी सामान्य हुए। हालांकि बाद में उसे स्थाई पेसमेकर दिल्ली में उस वक्त लगाए गए। अब वह मरीज जब कभी सामने आता है तो दिल खुशी से भर उठता है। मेरा मानना हैं कि मरीजों की ढेर सारी दुआएं व आशीष ही हमारे आत्मविश्वास को मजबूत करती हैं।
– डॉ. संजीव सांघवी, विभागाध्यक्ष, कार्डियोलॉजी विभाग, डॉ. एसएन मेडिकल कॉलेज

मैं ईश्वर को याद कर इलाज करता हूं
एमजीएच की आइसीयू में गंभीर मरीज ही आते हैं। जिनकी बचा नहीं सकते, उनके लिए मन में एक दुख होता है। लोहावट के 41 वर्षीय युवक ने जहर का सेवन कर लिया था। ये मरीज रूकी हुई धड़कन के साथ ही अस्पताल लाया गया। 23 दिन भर्ती रहा। तीन बार धड़कन रुकी, तीनों ही बार सीपीआर दिया गया। जिंदगी जाती और मैं लौटाने के प्रयास में लगा रहा। मरीज के परिजन मुझे याद करते रहे और मैं भगवान को याद कर इलाज करता रहा। ये मरीज 18 दिन तक वेंटिलेटर पर रहा। 23 दिन बाद मरीज को डिस्चार्ज दिया गया। चिकित्सक को आप भगवान न समझे, लेकिन इंसान व अपना मददगार समझे।
– डॉ. नवीन पालीवाल, आइसीयू इंचार्ज, एमजीएच

इसलिए मनाया जाता है डॉक्टर्स डे
हर साल 1 जुलाई के दिन डॉक्टर्स डे (राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस ) के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भारत के प्रसिद्ध चिकित्सक डॉ बिधानचंद्र रॉय को श्रद्धांजलि और सम्मान देने के लिए देशभर में डॉक्टर्स डे मनाया जाता है। डॉ. बिधानचंद्र रॉय की इस दिन जयंती और पुण्यतिथि होती है। 1 जुलाई 1892 में पटना जिले में उनका जन्म हुआ था।

Source: Jodhpur

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