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जोधपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका की सुनवाई के दौरान परिजन या याचिकाकर्ता के साथ जाने के निर्णय को लेकर उलझन में फंसी युवती को स्वतंत्र निर्णय करने के लिए नारी निकेतन, उदयपुर भेजने के निर्देश दिए हैं। अगली सुनवाई 6 जुलाई को युवती को दोबारा कोर्ट के समक्ष पेश किया जाएगा।

न्यायाधीश विजय बिश्नोई एवं न्यायाधीश कुलदीप माथुर की खंडपीठ में एक युवक ने याचिका दाखिल करते हुए कहा कि उसने युवती के साथ 8 मई को शादी की थी। विवाह पंजीकरण के लिए दोनों ने नगर निगम उदयपुर में आवेदन किया, लेकिन इससे पहले युवती के परिजन उसे जबरन ले गए और अवैध रूप से उसे अपने घर में कैद कर लिया। कोर्ट के निर्देश पिछली सुनवाई पर अतिरिक्त महाधिवक्ता एमए सिद्दिकी ने तथ्यात्मक रिपोर्ट पेश की, जिसमें कहा गया था कि युवती ने अवैध रूप से कैद किए जाने की बात से इनकार किया है।

इस पर याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने कोर्ट का ध्यान मुख्यमंत्री को भेजे गए युवती के ई-मेल की ओर आकर्षित किया, जिसमें उसने आरोप लगाया कि पुलिस अधिकारी उसे दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर कर रहे हैं और उसे अवैध रूप से कैद किया गया है। मामले में नया मोड़ आने पर युवती को कोर्ट के समक्ष पेश किया गया, जहां उसने विवाह की बात स्वीकार की और कहा कि उसके माता-पिता उसे जबरन ले गए। यह पूछे जाने पर कि युवती अब कहां जाना चाहती है तो शुरू में उसने याचिकाकर्ता के साथ जाने की बात कही, लेकिन कुछ देर बाद उसने कहा कि वह थोड़ी उलझन में है और अभी निर्णय लेने में सक्षम नहीं है। इसे देखते हुए कोर्ट ने युवती को सोचने का समय देते हुए नारी निकेतन उदयपुर भेजने के निर्देश दिए। नारी निकेतन अधीक्षक को निर्देश दिए गए कि युवती से उसकी इच्छा के विरुद्ध किसी को मिलने की अनुमति नहीं दी जाए।

Source: Jodhpur

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