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जोधपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने पशुधन सहायक भर्ती के लिए दो बार विकलांगता की श्रेणी में नहीं आने के बावजूद हेरफेर से पेश किए गए दिव्यांगता प्रमाण पत्र को लेकर याचिकाकर्ता के खिलाफ एफआइआर दर्ज करवाने के निर्देश दिए हैं। हालांकि जालसाजी पकड़े जाने पर याचिकाकर्ता की ओर से दो याचिकाएं वापस लेने का अनुरोध किया गया, लेकिन कोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए न केवल सख्त दिशा-निर्देश जारी किए, बल्कि पालना रिपोर्ट पेश करने का आदेश भी पारित किया।

न्यायाधीश रेखा बोराणा की एकल पीठ में याचिकाकर्ता मनीष चौधरी ने पशुधन सहायक भर्ती में चयनित नहीं किए जाने को दो बार चुनौती दी थी। कोर्ट ने पाया कि याची ने सबसे पहले 2016 में इस पद के लिए दिव्यांग श्रेणी में आवेदन किया था और इसके लिए 60 प्रतिशत दिव्यांगता दर्शाते हुए प्रमाण पत्र पेश किया। चयन सूची जारी होने के बाद दिव्यांगता का सत्यापन करने के लिए मेडिकल बोर्ड गठित किया गया। बोर्ड के अनुसार याचिकाकर्ता विकलांगता की श्रेणी में नहीं आता। इस आधार पर उसे नियुक्ति नहीं दी गई। याची ने उस आदेश को चुनौती दी। अतिरिक्त महाधिवक्ता अनिल कुमार गौड़ ने कोर्ट का ध्यान आकर्षित करते हुए कहा कि वर्ष 2018 में इसी पद के लिए विज्ञापित भर्ती में याचिकाकर्ता ने दोबारा दिव्यांगता श्रेणी में आवेदन दिया और साथ में 2016 का ही दिव्यांगता प्रमाण पत्र संलग्न किया। इस प्रमाण पत्र में हेरफेर करते हुए दिव्यांगता का प्रतिशत 40 कर दिया गया।

दूसरी भर्ती प्रक्रिया में भी नियुक्ति से वंचित रहने पर याची ने दूसरी याचिका दायर की। कोर्ट के अंतरिम आदेश से जब याचिकाकर्ता के दस्तावेजों का सत्यापन किया गया तो यह खुलासा हुआ कि दिव्यांगता का प्रमाण पत्र फर्जी था। इसे गंभीरता से लेते हुए कोर्ट ने याचिकाकर्ता के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाने के निर्देश दिए हैं। पशुपालन विभाग को कहा गया है कि भविष्य की किसी भी भर्ती परीक्षा में बैठने से रोकने के लिए याचिकाकर्ता के खिलाफ उचित कानूनी कार्रवाई की जाए। विभाग को याची की ओर से पेश प्रमाण पत्र के संबंध में इस तथ्य की जांच करने के निर्देश दिए गए हैं कि क्या ऐसा जाली विकलांगता प्रमाण पत्र कभी जारी किया गया था या नहीं। यदि यह पाया जाए कि ऐसा प्रमाण पत्र जारी किया गया था तो उस अधिकारी के खिलाफ भी जांच करने को कहा गया है।

Source: Jodhpur

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