जोधपुर. पुष्करणा ब्राह्मणों की कुलदेवी उष्ट्रवाहिनी का 202 वर्ष प्राचीन मंदिर चांदपोल दरवाजे के बाहर है जिसमें देवी उष्ट्रवाहिनी ऊंट पर विराजित है। मंदिर के गर्भगृह में दो दैवीय मूर्तियां स्थापित है। एक देवी उष्ट्रवाहिनी तो दूसरी आद्य शक्ति हिंगलाज माता की है। दोनों ही मूर्तियां चार भुजाधारी है और तीन हाथों में त्रिशूल, तलवार और गदा और एक हाथ में गोटा है।
उष्ट्रवाहिनी मंदिर : पुष्करणा ब्राह्मणों की कुलदेवी उष्ट्रवाहिनी मंदिर में 202 साल से नियमित पूजन
मूर्ति के नीचे लेख में प्रयुक्त तिथि विक्रम संवत 1877 के भाद्रपद महीने की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि का उल्लेख है। कहा जाता है कि दोनों मूर्तियां पहले जोधपुर भीतरी शहर के नवचौकियां मोहल्ले की बगेची से लाकर पधराई गई थी। कालान्तर में विक्रम संवत 1877 याने सन 1820 में महाराजा मानसिंह के राज्यकाल में वर्तमान मंदिर में दोनों मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा की गई थी। मंदिर के गर्भगृह में दो दैवीय मूर्तियां स्थापित है। एक देवी उष्ट्रवाहिनी तो दूसरी आद्य शक्ति हिंगलाज माता की है।
पुष्करणा ब्राह्मणों की कुलदेवी है उष्ट्रवाहिनी
नवरात्र में होता है विशेष पूजन
दोनों ही नवरात्र में माता का विशेष पूजन किया जाता है। देवी उष्ट्रवाहिनी माता के खीर, खाजा, लापसी और मालपुए का ही भोग चढ़ाया जाता है। मंदिर प्रांगण में संकट हरण हनुमान मंदिर और काशी विश्वनाथ मंदिर भी है।
7 करोड़ से मंदिर का जीर्णोद्धार
प्राचीन उष्ट्रवाहिनी मंदिर पुष्करणा ब्राह्मणों सहित सभी श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केन्द्र है। मंदिर से जुड़े एडवोकेट कपिल बोहरा के अनुसार वर्तमान में सात करोड़ की लागत से मंदिर का जीर्णोद्धार किया जा रहा है।
Source: Jodhpur