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जोधपुर।
प्रदेश के खनन उद्योग से जुड़े करीब 25 लाख खान मजदूर अपनी ही पहचान से वंचित है। राज्य सरकार ने अपनी चुनावी घोषणा पत्र में प्रदेश के खान मजदूरों के कल्याण के लिए किए गए वादे के आखिर करीब तीन साल बाद गत 16 मई को ही खान मजदूर कल्याण बोर्ड के गठन किया। लेकिन अभी तक यह बोर्ड धरातल पर नहीं आया है। इससे खान मजदूरों के हाल जस के तस ही बने हुए है। ऐसी पहल करने वाला राजस्थान देश का पहला राज्य बना है।

खान मजदूर न सिर्फ आजिविका का बल्कि राज्य के राजस्व का भी एक बहुत बड़ा हिस्सा है। इसके बावजूद खान मजदूरों के कल्याण व उत्थान पर अर्जित आय का नगण्य हिस्सा ही व्यय किया जाता है। इससे खान मजदूर बदहाली व दयनीय जीवन जीने को मजबूर है। पंजीकरण नहीं होने से खान मजदूर सरकारी कल्याणकारी योजनाओं का लाभ नहीं ले पाते है।
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खान मजदूरों को यह लाभ मिलेगा

– बोर्ड बनने से मजदूर पंजीकृत होंगे, मजदूर व श्रमिक के रूप में पहचान मिलेगी।

– पेंशन व अन्य कल्याणकारी योजनाओं का लाभ मिलेगा।
– खान अधिनियम 1952 में खान मजदूरों के कल्याण का प्रावधान है, वे सभी पंजीकृत मजदूरों को मिलेंगे।

– सरकार की ओर से बनाए गए डीएमएफटी फण्ड का लाभ मिलेगा।
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अमलीजामा पहनाने व बजट की मांग

खान मजदूर सुरक्षा अभियान ट्रस्ट (एमएलपीसी) की ओर से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से गठित बोर्ड को अमलीजामा पहनाने व जिला खनिज फाउंडेशन ट्रस्ट (डी.एम.एफ.) से 50 प्रतिशत राशि आवंटन की मांग की गई है। एक क्रियाशील बोर्ड से प्रदेश के करीब 25 लाख खान श्रमिकों की पहचान सुनिश्चित होने का रास्ता साफ होगा। साथ ही, खान श्रमिक व उनके आश्रितों को कल्याणकारी योजनाओं का लाभ मिल सकेगा।
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यह प्रदेश के खान मजदूरों से जुड़ा उच्च स्तरीय मामला है। इस मामले में सरकार स्तर पर कार्यवाही चल रही है।
प्रवीणकुमार अग्रवाल, खनि अभियंता

जोधपुर
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बिना बजट प्रावधान के बोर्ड का अस्तित्व मात्र कागज में सिमटकर रह जाएगा। आगामी राज्य बजट में खान श्रमिक कल्याण बोर्ड के लिए बजट प्रावधान की मांग की गई है।

डॉ राना सेनगुप्ता, प्रबंध न्यासी
खान मजदूर सुरक्षा अभियान ट्रस्ट

Source: Jodhpur

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