जोधपुर।
देश को करोड़ों-अरबों रुपयों की विदेशी मुद्रा अर्जन कराने वाले निर्यात उद्योग कंटेनर्स से जुड़ी समस्याओं से परेशान है। खास बात यह है कि देशभर से निर्यात होने वाले विभिन्न उत्पाद विदेशी कंटेनरों में ही ढोए जाते है। देश में कंटेनर नहीं बनने से यहां के निर्यातक अन्य देशों के आयातित कंटेनरों से ही अपना माल भेज रहे है। इससे शिपिंग कम्पनियां मनमाने ढंग से निर्यातकों से करोड़ों रुपया शिपिंग चार्ज वसूल करती है । इससे निर्यातकों को आर्थिक हानि उठानी पड़ती है।
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स्वदेशी शिपिंग लाइन होने से हर साल बचेगा 25 अरब डॉलर रेमिटेंस
भारत विभिन्न उद्योगों का हब होने के साथ अच्छा निर्यातक देश भी है। निर्यातकों का कहना है कि ऐसे में, स्वेदशी अन्तरराष्ट्रीय शिपिंग लाइन खड़ी होनी चाहिए और देश में कंटेनर्स बने तो हर साल करीब 25 अरब डॉलर रेमिटेंस (भेजा गया धन) विदेशों में जाने से बचेगा। इससे निर्यात बढेगा और हजारों लोगों को रोजगार मिलेगा। जानकारी के अनुसार पिछले साल भारत ने करीब 84 अरब डॉलर का फ्रेट रेमिटेंस दूसरे देशों को दिया। स्वदेशी शिपिंग लाइन होने पर निर्यातक हर साल 25 से 30 अरब डॉलर की रेमिटेंस बचा सकेंगे।
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जोधपुर से सालाना 40 हजार कंटेनर्स का निर्यात
जोधपुर हैण्डीक्राफ्ट सहित कृषि प्रसंस्करण उत्पादों, टेक्सटाइल, स्टील आदि उद्योगों का हब बनता जा रहा है। जोधपुर से सालाना करीब 35-40 हजार कंटेनर्स निर्यात किए जाते है, जिसमें 80-85 फीसदी कंटेनर्स हैण्डीक्राफ्ट उत्पादों के होते है। इसके अलावा कृषि प्रसंस्करण उत्पादों सहित अन्य औद्योगिक उत्पादों के कंटेनर्स भी निर्यात होते है। जोधपुर हैण्डीक्राफ्ट्स एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष भरत दिनेश के अनुसार वैश्विक हालात सामान्य होने पर भारतीय निर्यात कारोबार बढ़ने की उम्मीद है। ऐसे में, देश को स्वदेशी शिपिंग लाइन की जरुरत है।
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फैक्ट फाइल
– 45-50 हजार रुपए 40 फीट कंटेनर का चार्ज ।
– 30-35 हजार रुपए 20 फीट कंटेनर का चार्ज ।- 35-40 हजार कंटेनर्स निर्यात होते है जोधपुर से हर साल।
– जोधपुर से मुन्द्रा, कांदला व नावा शिवा मुम्बई पोर्ट कंटेनर भेजे जाते है। वहां से शिपिंग कम्पनियां चीन, गल्फ व अरब देशों के माध्यम से अन्य देशों में कंटेनर भेजने का काम करती है।
Source: Jodhpur