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रेगिस्तानी शुष्क क्षेत्र में खेजड़ी, जाल, कुंमट, रोहिड़ा, केर, कंकेड़ी एक बार उगने के बाद स्वत: बिना पानी पनप जाते हैं। खेजड़ी वृक्ष यहां के लिए बहुपयोगी रहा है। इसकी पत्तियां पशुओ के चारे के लिए, लकड़ी ईंधन के लिए और सांगरी सब्जी के लिए उपयोगी है। पिछले 4-5 साल से खेजड़ी पेड़ के तने में गांठे होने, टहनिया और तना सूखने से अस्तित्व का संकट खड़ा हो गया है। धीरे-धीरे खेजड़ी के पुराने पेड़ नष्ट हो रहे हैं। पौधों से नए पेड़ बनने में कई साल लग जाते हैं।

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खतरे में राज्य वृक्ष

रोहिड़ा पेड़ की लकड़ी कीमती होने से लगातार इसकी कटाई हो रही है। इससे फर्नीचर बनाने में अधिक मांग रहती है। इससे बने डिजाइनदार फर्नीचर की देश-विदेश में मांग बढ़ी है। इससे रोहिड़ा विलुप्ति की ओर है। हालांकि रोहिड़ा राज्य वृक्ष होने से कटाई प्रतिबंधित है, लेकिन चोरी-छुपे कटाई जारी है।

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कम दिखने लगे फोग…गुग्गल

फोग झाड़ी का इस क्षेत्र में जमीन की उजड़ापन रोकने, पशुओं के आहार और औषधीय उपयोग है। पश्चिमी राजस्थान के पहाड़ी क्षेत्र में गुग्गल पौधों का जंगल हुआ करता था। गुग्गल गोंद की यहां से देश-विदेश में आपूर्ति हुआ करती थी। अब तो आयुर्वेदिक कार्य के लिए जरूरत पड़ऩे पर भी यह नहीं मिल पाता है।

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रेगिस्तानी क्षेत्र में जैव विविधता के लिए देसज पेड़ों को बचाना जरूरी है। आमजन की कृषि व पशुपालन आजीविका है। मरुस्थलीकरण इलाके में पेङ पौधे के संकट के चलते खेत खलिहानों और ओरण-गोचर, चरागाह विरान हो जाएंगे।

– भेराराम भाखर, पर्यावरण कार्यकर्ता

वर्षों पहले फोग से टीले अटे हुए रहते थे, लेकिन अब कहीं पर भी फोग नजर नहीं आ रहें है। गुग्गल गोंद से लोग छबडिय़ां भरकर लाते थे। अब गुग्गल पौधे ही समाप्त हो गए है।

– मौलवी अब्दुल करीम, बाड़मेर

Source: Jodhpur

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