संदीप पुरोहित
चुनाव का मौसम नहीं है फिर भी बैनर पोस्टर और होर्डिंग नजर आ रहे हैं। जय पराजय की अपीलें लगी हुई हैं। स्टूडियो से खिंचवाए शानदार फोटो देखते ही बन रहे हैं। उम्र चाहे ढल गई हो, पर फोटो में विश्वविद्यालय के प्रत्याशियों से कम नहीं लग रहे हैं। मन में उत्सुकता जगी कि यह चुनाव हो किस के रहे हैं? कार को लगभग रोकते हुए सड़क के किनारे खड़े होर्डिंगों पर नजर डाली तो पता चला कि चुनाव उम्मेद क्लब के हैं। आश्चर्य हुआ कि एक क्लब का चुनाव इस तरह लड़ा जा रहा है। जिन उद्देश्यों के लिए क्लबों की स्थापना की गई, उनके बिलकुल विपरीत है। ऐसा लग रहा है कि क्लब में चुनावी कबड्डी ज्यादा खेली जा रही दूसरे खेलों के मुकाबले। क्लब के कई नए पुराने सदस्यों को टटोला तो पता चला कि चुनाव किसी विधानसभा से कम नहीं है। यहां भी जीतने के लिए हर तरह के कार्ड खेले जा रहे हैं। जाति का कार्ड भी खूब चल रहा है। इसके अलावा हर चुनाव में जो सब चलता है, वो तो है ही। राजनीतिक दलों के जैसे ही प्रत्याशी के अपने अपने घोषित-अघोषित घोषणापत्र भी हैं। प्रत्याशियों के चुनावी कार्यालय हैं। उनकी रंगत अगर आप देखें तो दंग रह जाएंगे। क्या क्लब के चुनाव में इस तरह धनबल का उपयोग उचित है?
बस एक ही कमी रह गई कि कांग्रेस और भाजपा ने यहां अपने प्रत्याशी नहीं उतारे। वैसे नेता लोगों के दखल की सूचना है। भारत एक लोकतांत्रिक देश है। चुनाव में हमारी गहरी आस्था है। चुनावों की गंदगी को संभ्रांत लोगों का क्लब जस के तस अपना ले, यह तो उचित नहीं है। भाईचारे और मेलजोल जिसे सोशल लाइजङ्क्षनग कहते हैं, क्लबों की स्थापना का मूल तत्व था। वह तत्व गायब होता जा रहा है। अब सियासत के वैमनस्यता की बू आ रही है। क्लब अपने उद्देश्यों से भटक गया है तो इसके जिम्मेदार खुद क्लब के सदस्य हैं। सर्वसम्मति तो कोसों दूर है, पर क्या चुनाव को लो प्रोफाइल रखकर गरिमामयपूर्ण तरीके से नहीं लड़ा जा सकता है। क्या सियासी हथकंडे अपनाना कीचड़़ उछालना जरूरी है। अगर इस चुनावी प्रकिया को क्लब की मूल भावना के अनुरूप रख कर लड़ा जाए तो बेहतर होगा। यह ध्यान रहे परिणाम क्लब के सदस्य ही तय करेंगे। ऐसे में उनकी जिम्मेदारी बनती है कि वे ऐसे प्रत्याशियों को चुने जो उम्मेद क्लब की प्रतिष्ठा को पुर्नस्थापित करें। भद्र जनों का क्लब राजनीति का अखाड़ा नहीं बने, यह ध्यान रहे।
Source: Jodhpur