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बाजार में बिकने को आई सांगरी दे रही बढिय़ा कमाई

प्रति किलो 950-1000 तक रुपए के भाव

पाटोदी. आम लोगों की थाली का हिस्सा माने जाने वाली सांगरी इन दिनों किसानों की कमाई का बढिय़ा जरिया बनी हुई है। आमल यह है कि बाजार में काजू व बादाम हर आम आदमी को एक हजार रुपए से कम दर में मिल जाएंगे, लेकिन सांगरी नहीं मिलेगी। बाजार का जायजा लेने पर पता चला कि वर्तमान में बाजार में सूखी सांगरी एक हजार से ऊपर भाव में आ रही है। बाजार में सूखी सांगरी की मांग और बढिय़ा भाव के चलते बाजारों में सांगरी के ढेर लग रहे हैं।

प्रतिदिन व्यापारी बीस से तीस क्ंिवटल सांगरी किसानों से खरीद रहे हैं। बाजार में हमेशा की तरह लगभग चालीस से पचास लाख रुपए की सांगरी आ रही है। वहीं अबकी बार सांगरी पन्द्रह दिन के बाद आने के कारण काजू व बादाम से भी महंगी बिक रही है। बाजार के पंडितों के अनुसार देश-विदेश व हर होटल का प्रसिद्ध सब्जी होने के कारण किसानों को इसके आज भी बढिय़ा भाव मिल रहे हैं। गत वर्ष यही सांगरी चार सौ व पांच सौ रुपए से ज्यादा भाव नहीं थे। अब की बार गर्मी देर से होने व आंधी चलने के कारण बाजार में भी लेट होने के साथ भाव भी अच्छे मिल रहे हैं पर सांगरी कम पहुंच रही है। पाटोदी आस पास क्षेत्रों से पाटोदी सांगरी पहुंच रही है। किसान गांव-गांव में हरी सांगरी खेजड़ी के पेड़ से इक_ी कर इसे पानी में उबाल व सुखा कर लाते हैं। वही सूखी सांगरी के बढिय़ा भाव से ग्रामीण खुश नजर आ रहे हैं। कस्बा इन गांवों का प्रमुख व्यापारिक केन्द्र होने के कारण यहां रोज क्ंिवटलों तके भाव में सूखी सांगरी आ रही है। वहीं सुबह आठ बजे से बाहर बजे तक तो सांगरी खरीदने के लिए व्यापारियों में होड़ मची रहती है।

तीस-चालीस क्ंिवटल की आवक

कस्बे में रोज तीस से चालीस क्ंिवटल सूखी सांगरी बिकने के लिए आ रही है। प्रति किलो नौ सौ से एक हजार रुपए के बीच सूखी सांगरी खरीद रहे हैं। -राजेंद्रकुमार कांकरिया, व्यापारी

मांग के चलते खरीदारी

अभी गांवों में सांगरी की बहार है। अबकी बार किसानों को भी सूखी सांगरी के भाव भी ज्यादा मिल रहे हैं। किसान भी बहुत खुश हैं। -ललित जैन, व्यापारी

सिणधरी. काजू से दोगुने भाव में बिकने वाली सांगरी के पेड़ पर अब संकट मंडरा रहा है। ग्लोबल वार्मिंग एवं जलवायु परिवतज़्न के दुष्प्रभाव से विश्व में विख्यात सांगरी पर पिछले 4-5 वर्षो से संकट खड़ा हो गया है।

थार का कल्पवृक्ष कहा जाने वाला राजस्थान का राज्य वृक्ष खेजड़ी का पेङ गठिया रोग का शिकार हो जाने से जगह-जगह ठूठ में बदलने लगा है।इरिऑफिस कीट और फंगस के कारण खेजड़ी वृक्ष पर संकट आया है। इस पेड़ पर गिल्डू रोग, टहनियों पर बड़ी-बड़ी गांठें होने से सांगरी व पत्तियों का उत्पादन बहुत कम हो गया है। इस वर्ष मार्च में बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि होने खेजड़ी की मंझर झड़ जाने से भी सांगरी नहीं आने का बड़ा कारण रहा है।

शीतला सप्तमी को बढ़ जाती है मांग

राजस्थानी सांगरी की देश दुनिया में भारी मांग रहती है। अमूमन सूखी पतली सांगरी 1000-1200 रुपए प्रति किलो बिकती है, लेकिन शीतला सप्तमी के दौरान आपूतिज़् कम होने और मांग अधिक होने से प्रति किलो भाव 2000 तक पहुंच जाते हैं। सांगरी की सब्जी प्रोटीन तत्व होने की कारण अधिक महंगी बिकती है। गर्मियों में इसकी आवक होने पर किसान इन दिनों सांगरी बेच रहे हैं।

अधिक सिचाई या बरसात होने, रसायनिक अधिक उपयोग होने, छंगाई अधिक होने और वातावरण में तेजी से बदलाव आने से खेजड़ी वृक्ष सहित अन्य देसज पेड़ नष्ट हो रहें हैं। बचाव के लिए बदलते क्रम में एक तिहाई खेजड़ी की छंगाई करनी चाहिए। राजस्थान में 10-12 जिलों में खेजड़ी अधिक मर रही है। आफरी इसके रोकथाम के लिए प्रयासरत है। – एमआर बालोच, निदेशक आफरी जोधपुर

Source: Barmer News

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