बाड़मेर.Kargil Vijay Diwas 2023: करगिल युद्ध में पर्पल टू चोटी पर विजय पताका फहराने वाला सिपाही अब रेगिस्तान में पर्यावरण का सिपाही बन गया है। अपनी जिंदगी को युद्ध के बाद सेवानिवृत्ति लेकर प्रकृति को समर्पित कर दिया है।
बाड़करे के लूखों का तला गंगासरा के खेमाराम आर्य सेना में 1987 में सिपाही के तौर पर भर्ती हुए। 1999 करगिल युद्ध में 17 जाट रेजिमेंट में जम्मू कश्मीर में तैनात थे। उन्होंने युद्ध लड़ते हुए 26 जुलाई 1999 को विजय पताका फहराने वाली टीम में शामिल होने का गौरव हासिल किया।
उनके साथ के करीब 40 साथी इस युद्ध में शहीद हुए। खेमाराम ने युद्ध कौशलता से लड़ते हुए अंत तक विजय का लक्ष्य हासिल किया। वे कहते है कि राष्ट्र सेवा को समर्पित रहने का उनका मन रहा। 2002 में सेवानिवृत्ति बाद बाड़मेर आ गए और यहां आकर पर्यावरण व प्रकृति को खुद को समर्पित कर दिया।
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गोसेवा करते है
खेमाराम आर्य यहां मोहन गोशाला दांता में बीमार, असहाय, अपंग और पीड़ित गायों की सेवा का कार्य निरंतर कर रहे है। इन गायों का इलाज करने में खुद लगे रहते है। साथ ही पक्षियों के लिए भी दाने चुग्गे का प्रबंध कर उनकी सेवा में खुद की पेंशन की राशि लगा रहे है।
साइकिल पर ही चलना
पर्यावरण के प्रति खुद को समर्पित कर चुके खेमाराम साइकिल पर ही सवार रहते है। डीजल और पेट्रोल से चलने वाले वाहन तक में नहीं बैठते है, चाहे कहीं जाना हों। ई-रिक्शा में जरूर बैठते है। वे कहते है जिससे पर्यावरण को नुकसान हों, वह उन्हें पसंद नहीं।
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Source: Barmer News