बजरंग गौड/मूलाराम सारण
बाड़मेर. थार के किसान नई इबारत लिख रहे हैं। परिस्थितियां बदलने से खेती के आगे व्यापार भी मायने नहीं रखता। करोड़ों का व्यापार करने वाले भी इस ओर कदम बढ़ा रहे हैं। कई किसान अपनी मेहनत के दम पर हर वर्ष 20 से 90 लाख रुपए कमा रहे हैं।
सीमावर्ती आलमसर के सादुलाराम ने बीते वर्ष 35 से 40 लाख रुपए की खजूर बेची। जबकि गांधव के संतोष बिश्नोई ने मात्र 4 हजार वर्गफीट में पॉली हाउस लगा दो वर्ष में जैविक सब्जियों की चार फसल ली। इससे 40 से 45 लाख रुपए कमाए। वहीं पादरू के नरपतसिंह ने 60 हैक्टेयर में उपजे 90 लाख रुपए के देश-विदेश में अनार बचे।
अनार ने किया मालामाल
क्षेत्र फल – 60 हैक्टेयर
प्रति वर्ष पैदावार – 250 टन
आमदनी – 90 लाख
पादरू के नरपतसिंह छह साल पहले प्रशिक्षण के लिए नासिक गए। लौटने पर अपने खेत में अनार लगाने की योजना बनाई। शुरुआत में 3500 पौधे लगा। इसके बाद वर्ष 2016 तक कुल 35000 पौधे लगाए। तीन वर्ष बाद फल आना शुरू हुए। बीते वर्ष 250 टन अनार की पैदावार हुई। इसमें से 150 टन विदेशों में भेजे। वहीं करीब 100 टन विभिन्न राज्यों में भिजवाए। इससे उन्हें करीब 90 लाख रुपए की कमाई हुई। विश्वविद्यालयों के प्रोफेसर तथा कई व्यापारियों ने भी उनसे संपर्क किया। वर्ष 2018 में जयपुर में उन्हें भूमिपुत्र अवॉर्ड मिला।
इसके अलावा 200 नीम्बू के पौधों से करीब 6 टन नीम्बू की पैदावार ली। वहीं 5 बीघा में नेपियर घास से पशुओं के लिए चारा मिल रहा है। वहीं बचा हुआ चारा बेआसरा पशुओं को डाल रहे हैं।
तैयार किए अरंडी के बीज
नरपतसिंह ने बीते वर्ष 10 टन अरंडी के बीज तैयार किए। इसकी बाजार कीमत 50 रुपए के करीब थी, वहीं सरकार ने पूरी जांच के बाद 110 रुपए प्रति किलो के भाव से खरीदा। इससे भी उन्हें 11 लाख रुपए की कमाई हुई।
किसानों को आ रही समस्या
निमोटेड बीमारी की वजह से अनार की जड़ में गांठ बन जाती है। इससे पौधे में पानी की आपूर्ति नहीं होती। इसका पता नहीं चलने पर अन्य पौधों में भी फैल जाती है। वहीं जिले में इसका कोई चिकित्सक नहीं होने से किसानों को नुकसान हो रहा है। अनार फटने की समस्या भी है।
– नरपतसिंह, प्रगतिशील किसान
कुल क्षेत्रफल – 112 हैक्टेयर
अनुदान – 50 प्रतिशत (पहले 90 प्रतिशत)
प्रति वर्ष पैदावार -25 टन
आमदनी – 35-40 लाख
आलमसर के सादुलाराम सियोल ने 2010 में अपने खेत में अलग-अलग 10 मिस्मों की खजूर के 600 पौधे लगाए। इसमें 2013 में- बरई, मेडजूल, अलअजवा, नामेल, फर्द, निमेशी, खल्लास सहित 91 (देशी टिश्यू) किस्में शामिल हैं।
इनमें से बरई को ईराक की खजूर कहा जाता है। इसकी 25 टन पैदावार हुई। इसके दाम 100 रुपए के करीब रहा। मेडजूल को खजूर का राजा कहा जाता है। इसकी पैदावार 2 टन रही। बाजार में इसकी कीमत प्रतिकिलो 4500 से 5000 रुपए है, लेकिन मार्केटिंग के अभाव में 800 से 1000 रुपए तक ही मिल पाते हैं।
सरकार नहीं कर रही सहयोग
खजूर की खेती के लिए सरकार की ओर से सहयोग नहीं मिल रहा है। कई किसान खजूर लगा तो देते हैं, लेकिन उसे बेचने के लिए मार्केट नहीं मिल पाता। किसान अपने स्तर पर ही खजूर बेच रहे हैं। जबकि अहमदाबाद में इसके लिए मेला लगता है। वहीं खर्चा भी अधिक है। इस बार सरकार ने अनुदान भी 90 प्रतिशत से घटा कर 50 प्रतिशत कर दिया।
– चंद्रप्रकाश सियोल, किसान
क्षेत्र फल – 4 हजार वर्गफीट
कुल खर्च 35 लाख
अनुदान 50 प्रतिशत
प्रति वर्ष पैदावार – करीब 100 टन
आमदनी – 20-22 लाख
दो वर्ष में बेची 210 टन सब्जियां
गांधव के संतोष बिश्नोई का केयर्न सहित कई कम्पनियों में पाइप लाइन की आपूर्ति का व्यापार था। लेकिन काम छोड़ पॉली हाउस लगा जैविक सब्जियां उगाना शुरू किया। इससे बीते दो वर्ष में चार फासल में 210 टन उत्पादन हुआ। इससे उन्हें 40-45 लाख रुपए कमाए। उन्हें पॉलीहाउस लगाने में 35 लाख रुपए खच हुए। इसमें से 50 प्रतिशत सरकार ने अनुदान दे दिया।
अब इनमें जैविक तरीके से खीरा, शिमला मिर्ची व टमाटर की खेती की है। खुले में मिर्च, तुरई, करेला तथा थाई एप्पल बेर के पौधे लगाए गए हैं। उन्होंने कहा कि युवाओं को अपना खेत छोड़ अन्यत्र नहीं जाना चाहिए।
Source: Barmer News