हनुमान गालवा, जोधपुर। पहले आम चुनाव में 1952 में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ हुए। जोधपुर में तत्कालीन मुख्यमंत्री जयनारायण व्यास और महाराजा हनवंत सिंह विधानसभा चुनाव में आमने-सामने थे। इस विधानसभा सीट पर पूरे प्रदेश के साथ देशभर के लोगों की निगाह थी। मुख्यमंत्री पद पर रहते व्यास ने दो विधानसभा सीटों से चुनाव लड़ा और वे दोनों ही जगह से चुनाव हार गए। पराजय के बाद उनको मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र देना पड़ा।
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महाराजा हनवंत सिंह ने जोधपुर लोकसभा तथा जोधपुर बी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा। अपनी प्रतिष्ठा दांव पर लगाकर चुनाव में उतरे हनवंत ने मतगणना के दौरान बढ़त से खुश होकर जुबेदा के साथ प्लेन से उड़ान भरी। इस दौरान प्लेन क्रैश में दोनों की मौत हो गई। परिणाम सुनने के लिए वे जिंदा नहीं रहे। आकाशवाणी पर हादसे में उनकी मौत और चुनाव में जीत की दोनों खबरें साथ-साथ आई। उनके निधन के बाद देश में लोकसभा का पहला उपचुनाव हुआ, जिसमें निर्दलीय जसवंत सिंह मेहता विजयी रहे।
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कांग्रेस की सरकार बनी, पर व्यास सीएम नहीं
लोकनायक जयनारायण व्यास ने मुख्यमंत्री रहते हुए दो विधानसभा क्षेत्रों से चुनाव लड़ा और दोनों ही जगह बुरी तरह हार गए। जोधपुर सिटी बी विधानसभा क्षेत्र से उनके सामने महाराजा हनवंत सिंह चुनाव में उतर गए। सिंह को 11,786 मत मिले, जबकि व्यास को केवल 3,159 वोट ही मिल पाए। जालोर ए विधानसभा क्षेत्र से व्यास के सामने जागीरदार माधोसिंह को उतारा गया। यहां सिंह को 12,896 मत मिले और व्यास को केवल 3,712 वोट ही मिल पाए। चुनाव के बाद कांग्रेस की सरकार बनी, लेकिन व्यास मुख्यमंत्री नहीं बने।
एक नारे ने बदल दिया माहौल
राजशाही छोड़ने के बाद महाराजा हनवंत सिंह ने लोकशाही में अपनी जगह तलाशना शुरू कर दिया। चुनाव लड़ने की उनकी इच्छा से उनके सलाहकार सहमत नहीं थे। उन्होंने न केवल चुनाव लड़ा, बल्कि लोगों के बीच प्रचार के लिए पैदल ही निकल पड़े। प्रचार के लिए पैंफलेट भी छपवाए। उन्होंने नारा दिया- राज बदला है, रिश्ता नहीं…मैं थ्हां सूं दूर नहीं। इस नारे ने माहौल बदल दिया। वे लोकसभा और विधानसभा दोनों चुनाव जीते।
Source: Jodhpur