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बाड़मेर की सीट पर जीत-हार अब कई प्रत्याशियों के लिए मूंछ का सवाल बन गई है। उनकी राजनीतिक प्रतिष्ठा के लिए जीत का गणित चाहिए।

मदन प्रजापत/ अरूण कुमार- पचपदरा : पचपदरा से कांग्रेस से मदन प्रजापत ने जिला बनाने की बड़ी सौगात को अपना आधार बनाया। जिले के लिए चप्पल उतारकर संघर्ष किया लेकिन अब उनके लिए यह प्रतिष्ठा बन गया है कि बड़ी सौगात के बाद जीत मिलेगी या नहीं? भाजपा ने यहां अरूण कुमार चौधरी को चुनाव लड़ाया है। अरूण कुमार को पिता की जगह मिल गई लेकिन उनके लिए भी यह बड़ा सवाल है कि पार्टी ने जगह दी,अब वोटर्स ने स्थान दिया या नहीं।

कैलाश चौधरी- सांसद : केन्द्रीय कृषि कल्याण राज्यमंत्री कैलाश चौधरी के लिए यह चुनाव बहुत मायने रखता है। लोकसभा चुनावों से ठीक पहले विधानसभा के नतीजे आने हैै। भाजपा की दिल्ली तक की टिकट वितरण की प्रक्रिया में जिम्मेदार कैलाश चौधरी के लिए विधानसभा के परिणाम इस कसौटी पर होंगे कि कितने सही निर्णय रहे? भाजपा में हुई बगावत उनके लिए पहले से ही सवाल खड़े किए हुए है, अब नतीजों का इंतजार है।

मानवेन्द्रसिंह- सिवाना : मानवेन्द्रसिंह भाजपा छोड़ कांग्रेस में आए। 2018 में उन्हें झालावाड़ में वसुंधराराजे के सामने उतारा गया, जहां वे हार गए। 2019 के लोकसभा चुनावों में बाड़मेर-जैसलमेर से कांग्रेस के प्रत्याशी बनाए गए लेकिन बड़े अंतराल से हारे। अब उन्हें सिवाना से उतारा गया है, जबकि वे जैसलमेर से टिकट चाह रहे थे। मानवेन्द्र के लिए इस बार जीतना बहुत जरूरी है।

अमीनखां- शिव : जीत-हार से बड़ा सवाल अब अमीनखां के लिए फतेहखां की हार हो गया है। वे बार-बार यह दोहराते रहे है कि इसको वोट मत करना। उनके लिए इस बार फतेहखां की जीत-हार अपनी जीत-हार से ज्यादा मायने रख रही है।

फतेहखां- शिव : कांग्रेस जिलाध्यक्ष के पद को छोड़कर निर्दलीय चुनाव मैदान में उतर गए है। फतेहखां के यहां बागी होने का बड़ा कारण क्षेत्र में अपने वोटबैंक को बनाकर खुद का वजूद बताने की लड़ाई है।

हरीश चौधरी- बायतु : बाड़मेर-जैसलमेर में कांग्रेस का बड़ा चेहरा है। पंजाब के प्रभारी, पूर्व राजस्व मंत्री और राष्ट्रीय लीडरशिप में शामिल हरीश चौधरी खुद बायतु से चुनाव लड़ रहे है। जहां त्रिकोणीय मुकाबले में पेच फंसा है। इधर, उनके जिम्मे जिले की अन्य सीटों का गणित भी है।

मेवाराम जैन/ प्रियंका चौधरी – बाड़मेर : चुनावों से पहले यह माहौल था कि भाजपा को मेवाराम के सामने चेहरा नहीं मिल रहा है। जिसका नाम लो वो मेवाराम जैन का मुकाबला नहीं करने की स्थिति में था लेकिन भाजपा में टिकट वितरण से हुए बवाल बाद मामला बदल गया। निर्दलीय प्रत्याशी अब टक्कर में आ गई। तीन बार जीत चुके मेवाराम के लिए अब प्रतिष्ठा का सवाल है कि वह निर्दलीय से बाजी कैसे मारे? बागी बनकर उतरी प्रियंका चौधरी के लिए अब जीतना प्रतिष्ठा बन गई है। उन्होंने अपनी पार्टी के निर्णय को अस्वीकार कर यह लड़ाई लड़ी है। प्रियंका इस स्थिति में तो आ गई कि भाजपा को हरा रही है लेकिन उनके लिए सवाल अब कांग्रेस को हराने का है।

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Source: Barmer News

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