बाड़मेर. कमाल का परिणाम रहा…, विस्मित और रोमांचक। रेगिस्तान के तीन जिलों की 09 सीट पर कमल 06 जगह खिला। दो पंखुडिय़ों को नहीं तोड़ा होता तो संभवतया पूरा ही खिल जाता। पंखुडिय़ों को अलग जरूर किया लेकिन वे भी टूटी नहीं..सिर पर ताज पहन लिया। कांग्रेस के हाथ तो केवल एक जीत लगी।
बाड़मेर-जैसलमेर- बालोतरा में कांग्रेस सत्ता के काम, नया जिला और पुराने चेहरों पर भरोसा करके चुनाव लड़ा तो भाजपा नए गणित और नए चेहरों के साथ रही। भाजपा पर पहला सवाल दो जगह पर टिकट वितरण पर उठा और दोनों जगह जनता ने जवाब भी दिया…भाजपा से बगावत करने वालों को जीता दिया। कांग्रेस ने भी शिव में टिकट में नाराज किया तो खामियाजा तीसरे स्थान पर रहकर चुकाना पड़ा और दूसरे स्थान पर यहां पर भी वही रहा जिसका टिकट काटा। जनमत का आदेश पार्टियों के निर्णय के पक्ष में नहीं रहना पार्टियों को यह चैलेंज भी रहा कि जनता के मन की सुने, अपने मन से नहीं चुने..।
कांग्रेस केवल एक सीट लेकर खड़ी है… एंटीइंकम्बेंसी का शिकार कई सीट हुई। सरकार के विकास पर सत्ता के चेहरों ने पानी फेर दिया… जो म्हारी-म्हारी छाळियों ने दूध दही पाऊं की गणित पर पांच साल चलते रहे। जनमत मन में कहीं न कहीं गुस्सा था, ईवीएम में निकाल आए..परिणाम आने पर पता चल गया। सिवाना सीट पर कांगे्रस हर बार ऐसा क्यों करती है..जिससे भाजपा की झोली में खुद ही जीत डाल देती है। जिसकी चाहत जैसलमेर थी, उसे सिवाना में उतारकर कहीं सब के सब पीछे तो नहीं खिसक गए। गुुड़ामालानी में युवा का वादा करते-करते जनता को चेहरा अलग दे दिया,परिणाम तो पब्लिक के हाथ था,जवाब दे डाला। पचपदरा में नए जिले की सौगात के बावजूद जीत किनारा कर गई, भीतरघात की मात सीट मर गई। बायतु की जीत पर जश्न मनाया जा सकता है लेकिन महीन सा फर्क रहा..जरा सा खिसक जाते तो सबकुछ खो देते। कांग्रेस को सोचना तो जैसलमेर और पोकरण में भी पड़ रहा है। जातिगत फेक्टर के दो बड़े समीकरण हाथ में होने के बावजूद भी दोनों विधायकों की आपसी लड़ाई ही ले डूबी। मेरे पास ज्यादा, मेरे पास ज्यादा की हैसियत दिखाते एक दूसरे को कम करके माने। कांगे्रस को बड़ा झटका बाड़मेर की सीट है..तीन बार के जीते विधायक दो महीने पहले इस स्थिति में थे कि उनके सामने भाजपा के पास चेहरा ही नहीं हैै। एकतरफा जीत के गणित में थे लेकिन उन्हें अंदाजा ही नहीं था कि अंदरखाने कुछ और पक रहा है और बाहर कुछ और..पूरा जोर लगाने के बावजूद जीत उनके हाथ से खिसक गई। चौका तो नहीं लगा लेकिन चौंका दिया।
अब भाजपा पर आइए..बाड़मेर में इज्जत के काकरे हो गए। जो टिकट के समय किरकिरी थी,वो बागी होकर जीत गई। शिव में चौथे स्थान पर रह गए और भाजपा में जुम्मा-जुम्मा दो दिन रहकर बागी हुए युवा ने जमीन दिखा दी। बारी भाजपा के जीत की थी लेकिन बाजी बागी ने मार ली। बड़ी जातियों से जीत का गणित यहां नहीं चला। छोटी-छोटी जातियां और हमेशा पीछे रहने वाली महिलाएं आगे आई और जीत चुराकर ले गई। बायतु में भाजपा का यह दूसरा चुनाव है जब तीसरे नंबर पर है। नंबर गेम कह रहा है भाजपा यहां कांग्रेस छोडि़ए रालोपा की छाप के पीछे का चेहरा हो रही है। भाजपा चौहटन और बालोतरा में भी मुश्किल में आते-आते पार पड़ी। बेशक, गुड़ामालानी-सिवाना की जीत अलग है। सबसे बड़ी जीत तो पोकरण से महंत प्रतापपुरी की है। पिछले चुनावों की 872 की हार बाद लगातार पांच साल पोकरण में तप किया। तपस्या का ही फल है कि उनकी जीत रेगिस्तान में सबसे ऊंचाई पर खड़ी है। जैसलमेर में भाजपा का छोटूसिंह को टिकट देने का निर्णय सही साबित हुआ। सरलता और सादगी को लोग पसंद करते है,यह तो सच है। 2023 का यह परिणाम अब 2024 के लोकसभा की जमीन तय करेगा। दोनों ही दल अब इस नजरिए से फिर से जुटने वाले है।
जरूरी है..नए माननीय एक पाठ पढ़ ले कि जनादेश देने वालों के सपने है। उनके साथ जो खड़े रहे है उन्हीं की दुबारा पार पड़ी है और तीसरी बार भी जीत आए लेकिन जो जनता से अलग स्वयं को ही माननीय मानकर चले हैै वे आज हासिए पर आ गए हैै…बाड़मेर-जैसलमेर-बालोतरा तीनों जिलों के विकास का रोडमैप तैयार करे। आर्थिक उन्नति, प्रगति की सीढियां चल रहे इन जिलों का विजन 2023-2023 बनाएं और उस पर आज से ही काम करना शुरू करें…. मैदान जीता है,अब जनता का मन जीतने की बारी हैै।
Source: Barmer News