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आंधप्रदेश में बहुतायात से होने वाले चंदन के पेड़ अब मारवाड़ में भी लहलहा सकेंगे। शुष्क वन अनुसंधान संस्थान (आफरी) ने यहां चंदन के पेड़ की उपस्थिति पर रिसर्च पूरा कर लिया है। इसी के साथ चंदन के पौधे किसानों को वितरित किए जा रहे हैं। चंदन यहां लग तो जाएगा, लेकिन इसकी खुशबू कितनी और कब आएगी, इसको लेकर अभी पता नहीं है। किसानों की ओर से लगाए गए चंदन के पौधों पर पांच से दस साल के दौरान इसकी खुशबू के बारे में पता चलेगा। वैज्ञानिक इस पर रिसर्च कर रहे हैं।

चंदन दक्षिणी भारत में बहुतायात में होते हैं। दरअसल इसके पेड़ की जड़ों पर 8 से 10 साल बाद तेल बनना शुरू होता है, जो इसके तने व टहनियों से होता हुए पत्तियों तक पहुंचता है। तब जाकर चंदन की लकड़ी से खुशबू आती है। मरुस्थलीय जलवायु में यह तेल कब बनेगा और इसकी गुणवत्ता क्या रहेगी, इसको लेकर वैज्ञानिक अभी रिसर्च कर रहे हैं। अगर सब कुछ ठीक रहा तो अगले दस साल में यहां नीम, खेजड़ी व बबूल की तरह चंदन के पेड़ भी नजर आएंगे।

रिसर्च के लिए किसान ने दी अपनी जमीन
लोहावट के किसान विजय कृष्ण राठी के खेत पर चंदन के पौधे लगाने के लिए आफरी ने एक एमओयू किया है। विजय आफरी को नि:शुल्क 1.5 हेक्टर जमीन मुहैया कराएंगे। साथ ही संस्थान द्वारा लगाए गए पौधों की देखरेख भी करेंगे। रिसर्च के बाद ये पौधे व जमीन वापस किसान को दे दी जाएगी। परियोजना प्रभारी वैज्ञानिक डॉ. संगीता सिंह ने बताया कि जैविक उर्वरक आफरी में ही तैयार किया है। कई वर्षों के परीक्षण के बाद मल्टीलोकेशनल ट्रायल अब किसानों के खेतों में लगाया जा रहा है।

नर्सरी में तैयार किए
आफरी ने चंदन के पौधे अपनी नर्सरी में तैयार किए हैं। लोगों को वितरित कर रहे हैं।। एक पौधा 100 रुपए का है। चंदन खुद खाना नहीं बनाता है इसके लिए एक होस्ट प्लांट भी लगाना पड़ता है। इसके होस्ट प्लांट की जड़ों मेें चंदन की जड़ें प्रवेश कर जाती हैं और वहां से भोजन व पानी ग्रहण करती हैं।’

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अब खुशबू देखेंगे
हमनें कई वर्षों से शोध कर उन्नत किस्म के चंदन की पौध विकसित की है, जो उच्च गुणवत्ता वाली है। चंदन का पौधा मारवाड़ में पनप रहा है। इसकी खुशबू को लेकर रिसर्च किया जा रहा है। कम से कम पांच साल बाद इसके बारे में पता चलेगा।
– मानाराम बालोच, निदेशक, आफरी जोधपुर

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Source: Jodhpur

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