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एमडीएम अस्पताल में पथरी का अनूठा ऑपरेशन हुआ। सामान्य तौर पर जब डॉक्टर ऑपरेशन करने लगते हैं तो मरीज के शरीर से चार या पांच पथरी निकलती है, लेकिन इस केस में 80 पथरी के टुकड़े निकाले गए। इनमें सबसे बड़ा टुकड़ा 2 सेंटीमीटर का था। एमडीएम अस्पताल के अधीक्षक डॉ. नवीन किशोरिया ने बताया कि बाड़मेर निवासी 63 वर्षीय मरीज लंबे समय से पेट दर्द और बार-बार पीलिया होने से परेशान था।

सर्जरी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. भारती सारस्वत ने जांच की तो मरीज के पित्त की नली एवं थैली में पथरी मिली। पथरियों की संख्या ज्यादा एवं बड़े आकार के कारण उन्हें एंडोस्कोपी से निकालना संभव नहीं था। इसलिए गैस्ट्रोएंट्रोलॉजी विभाग में पित्त की नली में स्टेंट डालकर ऑपरेशन द्वारा पथरियां निकलने के लिए सर्जरी विभाग में भेजा। वरिष्ठ सर्जन डॉ. शूर सिंह सिसोदिया ने बताया कि इस ऑपरेशन को दूरबीन से सफलतापूर्वक किया गया। डॉ. एसएन मेडिकल कॉलेज के सर्जरी विभाग में यह अपनी तरह का पहला उदाहरण है।

सामान्य सर्जरी से कैसे अलग
पित्त की नली की पथरी प्राय: गैस्ट्रोएंट्रोलॉजी विभाग द्वारा मुंह से दूरबीन डालकर एंडोस्कोपिक पद्धति से निकाल दी जाती है। कई बार बड़ी पथरी को एंडोस्कोपी से निकालना संभव नहीं होता, तब सर्जरी विभाग बड़ा ऑपरेशन करता है, लेकिन दूरबीन से यह सर्जरी पेट पर केवल 4 से 5 छोटे छेद बनाकर की जाती है, जिससे मरीज को ऑपरेशन के बाद दर्द नहीं रहता एवं जल्दी अस्पताल से छुट्टी की जा सकती है।

जटिल गांठ निकाली
वहीं महात्मा गांधी हॉस्पिटल के गेस्ट्रो-सर्जरी विभाग में पेट, आंत और लीवर कैंसर के जटिल ऑपरेशन अब नियमित रूप से हो रहे हैं। अस्पताल अधीक्षक डॉक्टर फतेह सिंह भाटी ने बताया कि जैसलमेर निवासी महिला रेट्रो रेक्टल ट्यूमर से ग्रसित थी, जिसमें मलाशय के पीछे की तंत्रिकाओं में गांठ बन जाती है। गेस्ट्रो सर्जन डॉक्टर दिनेश कुमार चौधरी ने बताया कि इस प्रकार की गांठ काफी दुर्लभ होती है।

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गांठ को सावधानी से रक्त नलिकाओं से अलग किया गया। बाई तरफ के पैर की रक्त नलिका की मरम्मत की गई। मलाशय के कुछ हिस्से तथा गर्भाशय को भी गांठ के साथ ही निकाला गया। इसके बाद मरीज पूरी तरह से स्वस्थ है। गांठ की बायोप्सी अतिरिक्त प्राचार्य योगीराज जोशी ने की। टीम में डॉ.शुभम शर्मा, डॉ. डुंगर सिंह राजपुरोहित, नर्सिंग ऑफिसर रेखा और ओटी इंचार्ज अरविंद अपूर्वा ने सहयोग किया।

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Source: Jodhpur

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