गजेंद्र सिंह दहिया
शहर में सरकारी क्षेत्र में 3 मेडिकल कॉलेज हैं, लेकिन मेडिकल की पढ़ाई के लिए होने वाले देहदान में आयुर्वेद विवि सबसे पीछे है। करवड़ रोड स्थित डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन राजस्थान आयुर्वेद विश्वविद्यालय के अस्पताल में पिछले 20 साल में अब तक केवल दो लोगों ने देहदान किया है। इसके विपरित 12 साल पहले शुरू हुए एम्स में 17 लोग देहदान कर चुके हैं। वहीं, पचास साल से अधिक समय से संचालित राज्य सरकार के डॉ. एसएन मेडिकल कॉलेज में 208 देहदान हुए हैं। आयुर्वेद विवि में देहदान नहीं होने से यहां के बैचलर और मास्टर डिग्री कर रहे छात्र-छात्राओं को डॉ. एसएन मेडिकल कॉलेज से बॉडी लेकर पढ़ाई करनी पड़ रही है। मेडिकल कॉलेज साल में एक या दो बॉडी आयुर्वेद विवि को देता है, जिससे वहां के विद्यार्थी प्रेक्टिल कर पाते हैं।
एक साल में कितनी बॉडी की जरूरत
एम्स में जहां एक साल में 16 बॉडी की आवश्यकता पड़ती है, वहीं एसएन मेडिकल कॉलेज में 10 बॉडी की जरूरत होती है। एक बार एक बॉडी का डिसेक्शन करने के बाद इसे लगभग 15 साल तक उपयोग लिया जा सकता है। शरीर के समस्त भागों को अलग-अलग करके विशेष रासायनिक घोल में रखा जाता है। इसके अलावा ऑर्थोपेडिक, न्यूरोसर्जरी, ईएनटी जैसे विभागों की लाइव कार्यशाला में भी देहदान से मिली बॉडी पर सर्जरी करके अन्य डॉक्टरों को प्रशिक्षित किया जाता है।
एनाटोमी विभाग की पूरी पढ़ाई बॉडी पर
एम्स और डॉ. एसएन मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस प्रथम वर्ष में छात्र-छात्राओं को मानव शरीर की पूरी एनाटोमी यानी शरीर रचना पढ़नी पड़ती है। छात्र-छात्राएं बॉडी पर चीर फाड़ के जरिए ही शरीर की रचना समझ पाते हैं। आयुर्वेद विवि में आयुर्वेद, होम्योपैथी, यूनानी और प्राकृतिक योगा के प्रथम वर्ष के छात्र-छात्राएं भी शरीर रचना पढ़ते हैं। उन्हें भी बॉडी की जरुरत पड़ती है, लेकिन बॉडी नहीं होने से वे जैसे-तैसे काम चलाते हैं।
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आयुर्वेद विवि ने भी नहीं फैलाई जागरुकता
अधिकांश लोग देहदान की जरूरत केवल एलोपैथी की पढ़ाई में मानते हैं। यही कारण है कि आयुर्वेद विवि को अब तक कम देहदान प्राप्त हुआ है।
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Source: Jodhpur