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जोधपुर के पं. ओमदत्त शंकर ने बताया कि दरअसल शुक्रवार को मिथुन राशि में होने वाला चन्द्रग्रहण वास्तविक ग्रहण की कोटि में ही नहीं होने से कोई यम-नियम सूतक लागू नहीं होंगे। धर्मशास्त्र में इसको उपछाया अथवा मांद्य चन्द्रग्रहण कहा जाता है। ऐसे ग्रहण में चन्द्रमा काला नहीं बल्कि आंशिक रूप से धुंधला होता है। ग्रहण का धार्मिक दृष्टि से कोई महत्व ही नहीं होने के कारण धार्मिक आयोजन निर्बाध रूप में किए जा सकेंगे। इस ग्रहण के यम नियम, जप, दान, सूतक, पुण्यकाल का कोई महत्व नहीं है। यह ग्रहण 10 जनवरी को रात्रि 10.38 बजे से शुरू होकर 11 जनवरी रात 2.42 बजे तक रहेगा। ग्रहण का मध्य रात्रि12.40 बजे होगा । यह उपछाया चन्द्रग्रहण यूरोप, एशिया, आस्ट्रेलिया, अमरीका के उत्तरीपूर्वी क्षेत्रों, ब्राजील के पूर्वी क्षेत्रों, प्रशांत अटलांटिक महासागर में दिखाई देगा।

सिर्फ बिंब धुंधला सा होगा चन्द्रमा का

पं. ओमदत्त ने बताया कि कुल चार घंटे व चार मिनट के उपछाया चन्द्रग्रहण में चन्द्र का बिंब काला नहीं दिखाई देता है, बल्कि मलीन छाया आने से धुंधला सा दिखाई देता है। चन्द्रग्रहण से पहले चन्द्रमा पृथ्वी की उपछाया में प्रवेश करने से चन्द्रमा मालिन्य होता है। इसके बाद चन्द्रमा की वास्तविक छाया में प्रवेश करने पर ही चन्द्रग्रहण लगता है। लेकिन शुक्रवार को हो रहे चन्द्रग्रहण के दौरान चन्द्रमा उपछाया में प्रवेश के बाद संकु से ही निकल जाएगा। इस वजह से उपछाया के समय चन्द्रमा का विंब केवल धुंधला सा होगा। अक्षय ज्योतिष अनुसंधान केन्द्र पं. कमलेश कुमार दवे ने बताया कि जब चन्द्रग्रहण भारत में ही दृश्यमान नहीं है तो फिर किसी यम नियम का कोई अर्थ ही नहीं है।

ऐसे होती है खगोलीय घटना
चन्द्रमा पृथ्वी का उपग्रह है। अपनी अंडाकार धुरी पर यह एक महीने में पृथ्वी का एक चक्कर काट लेता है। पृथ्वी और चन्द्रमा की धुरियां एक दूसरे पर पांच डिग्री का कोण बनाती है और दो जगहों पर काटती है। यह स्थान ग्रंथी कहलाते है। चन्द्रमा और पृथ्वी परिक्रमा करते हुए सूर्य की सीधी रेखा में नहीं आते है, यही वजह है कि पृथ्वी की छाया चन्द्रमा पर नहीं पड़ती है। पूर्णिमा की रात में परिक्रमा करता हुआ चन्द्रमा जब पृथ्वी की कक्षा के पास आने पर पृथ्वी की अवस्था सूर्य व चन्द्रमा के बीच एक सीध में होती है। इससे पृथ्वी की छाया चन्द्रमा पर पडऩे लगती है। इसी को चन्द्र ग्रहण कहा जाता है। जब चांद के सम्पूर्ण बिंब हसिया के समान काली छाया नजर आने पर इस अवस्था को आंशिक व खण्डग्रास चन्द्रग्रहण कहा जाता है। कुछ मौकों पर यह काली छाया जब चन्द्रमा को पूरी तरह ढक लेती है तो इस अवस्था को पूर्ण चन्द्रग्रहण या खग्रास चन्द्रग्रहण कहा जाता है।

मांद्य चन्द्रग्रहण तो पंचाग में भी शामिल नहीं करते

वराहमिहिर ज्योतिष अनुंसधान केन्द्र के महेश मत्तड़ ने बताया कि शुक्रवार को होने वाले मांद्य चंद्रग्रहण में हल्की से चंद्रमा की कांति मलीन हो जाएगी। लेकिन चंद्रमा का कोई भी भाग ग्रहण ग्रस्त नहीं होगा। इसी कारण से यम नियम सूतक और कोई धार्मिक मान्यता नहीं है। उपच्छाया वाले चन्द्रग्रहण नग्न आंखों से नहीं दिखते हैं, इसलिए उनका पंचाग में समावेश नहीं होता है। ऐसे ग्रहण से सम्बन्धित कर्मकाण्ड यानि कोई पूजा पाठ भी नहीं किया जाता है। सभी परंपरागत पंचाग केवल प्रच्छाया वाले चन्द्रग्रहण को ही सम्मिलित करते हैं।

Source: Jodhpur

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