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बाड़मेर.
भारत और पाकिस्तान दोनों ही देशों में रहने वाले मांगणिहार कलाकर को ईश्वर की कृपा और अल्लाह की नेमत दोनों बख्शी गई हैै। जन्म से मुसलमान ये लोग कर्म से हिन्दू परिवारों से जुड़े है। लोकगायकी से ताल्लुक रखने वाले ये परिवार मंगलवार से रमजान के रोजे रखेंगे। कुछ दिन बाद होली पर वे फाल्गुनी रंगों में रंगे हुए अपने यजमानों के यहां देवी स्तुति करेंगे। पुरी अयोध्या राजा दशरथ घर रामचंद्र अवतार लियो… गाते हुए पद्मश्री अनवरखां बहिया कहते है, मांगणिहार कलाकारों के ऊपर यह मेहरबानी भगवान और अल्लाह की है।
मांगणिहार कलाकार बाड़मेर-जैसलमेर और उधर पाकिस्तान में थारपारकर में बसे हुए है। लोकगायक इन परिवारों को घुट्टी में गायकी मिली हुई है। कहते है मांगणिहार का बच्चा तो दुनियां में आते हुए रोता भी सुर में है। इन परिवारों पर सरस्वती की कृपा तो है ही खास बात यह है कि ये जन्म से यानि धर्म से मुसलमान है। यजमानी प्रथा में मुसलमान होने के बावजूद इनको हिन्दू परिवार मिले, जिसमें विशेषकर राजपूत। इन परिवारों के यहां मांगलिक अवसर पर मांगणिहार परिवार के सदस्य पहुंचकर मंगल गीत गाते है। इसके अलावा देवी स्तुतियां, भजन और हरजस भी। मांगणिहार परिवार गांव-गांव में बसे है और अभी तक अपनी परंपरा और जड़ों से जुड़े है।

मुस्लिम मजबह निभाने पर नहीं ऐतराज
मांगणिहारों का रहन-सहन, पहनावा और बोली सब हिन्दू परिवारों से मिलती है लेकिन जन्म से मुस्लिम होने से ये अपने मजहब को भी निभाते है। यानि ये मंगलवार से शुरू हो रहे रोजे रखेंगे और ईद भी मनाएंगे। हिन्दू परिवारों ने इस पर कभी भी ऐतराज नहीं किया, उल्टा ये इन दिनों में इन परिवारों के पास पहुंचते है तो यथायोग्य भेंट पाते है।
होली-दिवाली और नवरात्रा भी
हिन्दू यजमानों के साथ कई पीढिय़ां बिता चुके इन परिवारों को थारपारकर पाकिस्तानर में भी हिन्दू परिवार संरक्षण दिए हुए है और इधर भारत में भी। लिहाजा ये हिन्दू परिवारों के संग होली, दीपावली मनाते है और नवरात्रा भी रखते है।
70-70 देश घूम लिए, घर में पद्मश्री..फिर भी सरलता वही
मांगणिहार परिवारों में सरलता और यजमानों के प्रति आदरभाव को इसी बात से समझा जा सकता है कि इन कलाकारों ने अपनी गायकी के बूते 70 -70 देशों की यात्रा कर ली है। दुनियां के बड़े-बड़े उस्तादों के साथ मंच साझा करके लौटते है। इतना ही नहीं पद्मश्री और संगीत नाटक अकादमी के बड़े-बड़े पुरस्कार इनको राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और बड़ी-बड़ी हस्तियों से मिले है। टी.वी. पर तो अब इन कलाकारों को पहुुंचना रोजमर्रा हो गया है, लेकिन से गांव आकर उसी सरलता के साथ यजमानी प्रथा में जीते है।
सात जन्म मांगणिहार बनाएं
मैं कहता हूं मुझे सात जन्म मांगणिहार बनाए। इसी बाड़मेर-जैसललमेर की जमीन पर जन्म दें और इसी तरह हम गाते रहे। तभी तो हमें हिन्दू-मुस्लिम दोनों ही धर्म एक जन्म में निभाने की कृपा मिली है।
-अनवरखां बहिया, पद्मश्री

Source: Barmer News

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