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Shitala Mataji Temple : पौराणिक देवी मंदिरों में जहां अखण्ड ज्योति जलती है, वहीं फलोदी शहर में माताजी का एक ऐसा मंदिर है, जहां मंदिर स्थापना के सदियों बाद भी दीप ज्योति नहीं जलाई गई है और मंदिर में पूजन के समय केवल बासी कलेवा का भोग लगाया जाता है। पूरे दिन आमजन भी इसी बासी कलेवे को प्रसाद के तौर पर ग्रहण करते हैं। गौरतलब है कि फलोदी शहर के ऐतिहासिक दुर्ग के पीछे शीतला माता का मंदिर स्थापित है। जहां सोमवार को मेला भरेगा। इस दौरान मंदिर में परम्परागत रूप से बनाया जाने वाला भोजन बाजरे की रोटी, दही-चावल की भात, लांजी, मोगर की पूरी आदि पकवानों का प्रसाद चढ़ाया जाएगा, जिसे एक दिन पहले रविवार को तैयार किया जाएगा।

रसोईघरों में अवकाश
शीतला सप्तमी का पर्व इस बार सोमवार को मनाया जाएगा। शीतला सप्तमी के एक दिन पूर्व घरों में अलग अलग व्यंजन बनाए जाएंगे। खासतौर पर करबा, राब, पंचकूटे की सब्जी, मठरी, दहीबड़े, कांजी-बड़े आदि व्यंजन मां शीतला के साथ ओरीमाता, अचपड़ाजी एवं पंथवारी माता पूजन एवं भोग के बाद बतौर प्रसादी के रूप में ग्रहण किए जाएंगे। माताजी को भोग लगाने के लिए महिलाएं रविवार को परम्परागत भोजन बनाएंगी और सोमवार को शीतला माता की पूजा अर्चना के बाद उसी भोजन को प्रसाद के रूप में ग्रहण करेंगी। इस बार सोमवार को रसोईघरों में अवकाश रहेगा।

जोधपुर में मनाते हैं शीतलाष्टमी
जोधपुर में शीतला माता पूजन सप्तमी की बजाय अष्टमी को करने की मान्यता है। इसका कारण विक्रम संवत 1826 में सप्तमी के दिन ही तत्कालीन जोधपुर महाराजा विजयसिंह के दो कुमारों की मृत्यु हो जाने से शीतला सप्तमी को अकता रखने की परम्परा आज भी चली आ रही है। मान्यता के अनुसार शीतला माता की सवारी गदर्भ को माना जाता है और माता के सामने बच्चों को चर्म संबंधी रोगों से बचाव के लिए गधोलिया बनाने की परम्परा चली आ रही है। शीतला माता पूजन के समय छोटे बच्चों को गधोलिया बनाकर मां शीतला से बचाव की प्रार्थना की जाती है।

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Source: Jodhpur

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