जोधपुर.गांधीवादी और सर्वोदयी समाजसेविका आशा बोथरा का कहना है कि कस्तूरबा गांधी और महात्मा गांधी के 151 वें वर्ष में सत्य व अहिंसा के मार्ग पर अपनी पगडंडियां बनाएं। सोचें कि सत्याग्रह से स्वरक्षा कैसे आए। विज्ञान अध्यात्म ही सर्वोदय है। अत: नव संसार का झंडा सुरक्षा, स्वरक्षा व समानता बने। उन्होंने पत्रिका से एक मुलाकात में यह बात कही। उन्होंने कहा कि महिलाओं पर हिंसा रोकना, किसी कानून में संशोधन, महिला स्वास्थ्य और आर्थिक दशा में सुधार के मुख्य मुद्दे हैं, जो महिला आंदोलन से सामाजिक अंकेक्षण को सस्ता बना सकते हैं। प्रश्न यह है कि बच्चे को इन्सान कैसे बनाया जाए। पुरुष भी इन्सानियत के ज्यादा नजदीक आए। महिलाओं के सही विकास के लिए जरूरी है कि घरेलू जिम्मेदारिया परस्पर मूल्यों के साथ हों ,ताकि अपनी निजी आजादी पर भी गौर करें। गांधी शांति प्रतिष्ठान केंद्र की अध्यक्ष बोथरा ने कहा कि समाज के विकास को मापने का एक यंत्र है उस समाज में खुली निगाहों से स्त्रियों की दशा को देखना। स्त्री पुरुष के बीच कायम गैर बराबरी का अक्स सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक परिदृश्य में भी देखा जा सकता है। समतामूलक भाषा का नहीं होना भी हमारी सामाजिक संरचना में व्याप्त लैंगिक भेदभाव का परिणाम है और प्रमाण भी। उन्होंने कहा कि महिलाआें को दोयम दर्जा व पुरुष प्रधानता प्रत्येक देश व समाज में विद्यमान है। स्थानीय परिस्थितियों में अंतर हो सकता है। परिवारों ने पुरुष वर्चस्व का अमिट पाठ पढ़ा है और समाज में जिन्हें उस वर्चस्व को समर्थन भी दिया है। स्त्री की उपस्थिति बदली है स्थिति नहीं। स्त्री उत्पीडऩ के विरुद्ध सजग मंच नहीं बन सके। स्त्रियों ने एक कदम आगे बढ़ाया है।बोथरा ने कहा कि सही कदम बढ़ा हुआ सही दिशा में बढ़ता दिखता जाये। सिसकियों पर पड़े पहरे की बंदिशों को उसने तोडऩा सीखा है। इसी से वो अमानवीय तकलीफ से निकल पाएगी। स्त्रियों पर होने वाले अत्याचारों की खबरें बढ़ती जा रही हैं। मीडिया उसे सामने ला रहा है। यह स्थिति एक सकारात्मक आयाम है। व्यापक परिवर्तन लाने के लिए व्यापक सोच की जरूरत है।
Source: Jodhpur