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जोधपुर. कोरोना वायरस का संक्रमण इन दिनों डॉक्टर्स के लिए परेशानी का कारण बना हुआ है, लेकिन इलेक्ट्रिकल इंजीनियर्स के लिए तो यह पहले से ही एक बड़ी समस्या है। दरअसल इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में ट्रांसमिशन लाइनों के जरिए विद्युत भेजते समय हवा में उत्पन्न होने वाले प्रभाव को कोरोना प्रभाव कहते हैं। इसके कारण बिजली में क्षति होने के साथ ट्रांसमिशन लाइन की एफिशिएंसी भी कम हो जाती है।

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यह है कोरोना प्रभाव
एमबीएम इंजीनियरिंग कॉलेज में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में शोधार्थी हरिश ख्यानी और विनित मेहता ने बताया कि विद्युत प्रणाली में उत्पन्न विद्युत शक्ति ट्रांसमिशन लाइनों के माध्यम से प्रेषित होती है। ट्रांसमिशन लाइन हवा में होती है और उसके आसपास हमेशा हवा बनी रहती है। जब ट्रांसमिशन लाइन से ज्यादा वोल्टेज को एक जगह से दूसरी जगह भेजा जाता है तब उस कंडक्टर के आसपास चुम्बकीय प्रभाव उत्पन्न होने लगता है। इससे तारों के आसपास की हवा डाई इलेक्ट्रिक माध्यम का काम करती है।

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हवा का डाई इलेक्ट्रिक माध्यम तापमान के अनुसार बदलता रहता है। हवा का इलेक्ट्रिकल सामान्य तापमान 30 किलोवाट प्रति सेंटीमीटर होता है यानी एक सेंटीमीटर हवा के अंदर 30 किलो वोल्टेज या फिर उससे भी ज्यादा वोल्टेज निकलता है। तब हवा में भी करंट पैदा हो जाता है। इसको हवा का ब्रेकडाऊन होना कहते हैं। इससे हाई वोल्टेज लाइनों में वाइब्रेशन भी पैदा होता है। साथ ही कंडक्टर के पास बैंगनी रंग का प्रकाश भी दिखाई देता है। इस प्रकाश के बनने को कोरोना प्रभाव कहा जाता हैं।

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दूरी बनाकर ही बचा जा सकता है
डॉक्टर और इंजीनियर दोनों ही कोरोना से बचने के लिए संक्रमित वस्तुओं, इंसानों से दूरी बनाने की सलाह देते हैं। इंसान को जहां आइसोलेशन में रखा जाता है वहीं इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हमेशा कोरोना प्रभाव को कम करने के लिए समानांतर ट्रांसमिशन लाइनों के मध्य दूरी बढ़ा देते हैं।

Source: Jodhpur

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