दिलीप दवे
बाड़मेर. पति की मौत ने भी जिस राकूदेवी का आत्मविश्वास नहीं तोड़ा और नन्हीं बेटी व खुद को पालने के लिए हाथठेले पर सब्जी बेचना शुरू किया, उसका हौसला अब टूटता नजर आ रहा है। कोरोना के कहर के चलते सूने बाजार के बीच राकू हर रोज सब्जी का ठेला लगा रही है, लेकिन ग्राहक नहीं आ रहे। सब्जियां खराब हो और बिक नहीं रही। ऐसे में उसके चेहरे पर चिंता है कि अब वे अपना पेट इस बुढापे में कैसे पालेंगी।
राकूदेवी की शादी करीब चालीस साल पहले स्थानीय शास्त्रीनगर निवासी मूलाराम से हुई थी। चंद के कुछ माह बाद ही पति का मानसिक संतुलन बिगड़ गई और आठ साल बाद असामयिक निधन हो गया। पीछे बचे तो राकुदेवी और उसकी इकलौती बेटी। बेटी व खुद का पेट पालने के लिए उन्होंने सब्जी बेचना शुरू किया। सब्जी मंडी से सब्जियां खरीदकर लाती है और यहां ठेले पर सजाकर बेचती है। सालों से हाथ ठेले पर सब्जी बेच वे अपना गुजर बसर कर रही है। कभी भी दो वक्त की रोटी की कमी नहीं रही, लेकिन पिछले छह दिन उनके लिए मुश्किल भरे हो रहे हैं। 22 मार्च को जनता कफ्र्यू और इसके बाद लॉक डाउन के चलते ग्राहकों का आना बंद हो गया है। एक बार लाई सब्जी दो-तीन भी बिक नहीं रही। सब्जियां गलने से लागत भी मिल नहीं रही। ऐसे में उसके सामने दो वक्त की रोटी का संकट पैदा हो गया है।
कोई सहायता ना मददगार- राकुदेवी के अनुसार कोरोना में हर दिहाड़ी मजदूर को सहयोग की बात कही जा रही है, लेकिन उनको कोई मदद नहीं मिली है। पार्षद या नगरपरिषद की ओर से कोई उससे पूछने तक नहीं आया। राशनकार्ड पर गेहूं नहीं मिल रहा तो इधर सब्जियां बिक नहीं रही। ऐसे में रोटी का प्रबंध करें भी तो कैसे?
पहले अच्छी कमाई, अब लागत के लाले- राकूदेवी के अनुसार बाड़मेर की नई सब्जी मंडी के सामने आने-जाने ग्राहक सब्जियां खरीदने थे। ऐसे में सुबह वे सब्जी मंडी से सब्जियां लेकर आती और शाम को अमूमन अधिकांश सब्जियां बिक जाती थी। अब स्थिति उलट है, लॉक डाउन के चलते पैदल पहुंचने वाले कम है। वाहनों आने वाले सब्जी मंडी से ही सब्जी खरीद कर चले जाते हैं। ऐसे में एक दिन पहले लाई सब्जी भी अब तक नहीं बिकी है।
Source: Barmer News