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गजेंद्रसिंह दहिया/जोधपुर. विश्व प्रसिद्ध बीकानेरी भुजिया और पापड़ का अद्भुत नमकीन स्वाद देने वाला साजी (हेलोक्सीलोन रिकर्वम) के पौधा का अस्तित्व खतरे हैं। प्रदेश के उत्तरी हिस्से में इस पौधे के स्थान पर किसान चावल की खेती कर रहे हैं जिससे आने वाले समय में भुजिया और पापड़ में साजी खार की बजाय सामान्य नमक का इस्तेमाल करना पड़ सकता है। पाकिस्तान में भी साजी खूब होती है। ऐसे में भविष्य में वहां से साजी आयात करने पर पापड़-भुजिया महंगा होने की आशंका है।

हनुमानगढ़ और श्रीगंगानगर के अनूपगढ़ व सूरतगढ़ में साजी की झाडिय़ां बहुतायात में होती हैं। बीकानेर में भुजिया व पापड़ उद्योग इसी साजी के कारण प्रसिद्ध हुआ। मानसून के बाद नवम्बर में साजी पर फूल आने के बाद इस पौधे को एक गड्डे में इकठ्ठा करके सुखा देते हैं। सूखने के बाद इसमें आग लगाते हैं। इसका सत नीचे टपकता रहता है। इसे पानी में डालकर इसे सुखाकर उपयोग में लेते हैं। इसमें सोडियम कार्बोनेट होता है जिससे पापड़ और भुजिया का लजीज स्वाद पैदा होता है।

थार के इन पौधों की जैव विविधता में भी बदलाव
– फेल (डी. ग्लोकम) पौधा जैसलमेर से बीकानेर की तरफ शिफ्ट हो रहा है। ओमान में सर्वाधिक मिलता है।
– जयपुर व सीकर में चारे के रूप में उपयोगी आरड़ू (एलेंथस) जोधपुर सहित पश्चिमी राजस्थान पहुंचा। यहां भगत की कोठी से अमृता देवी पार्क तक बहुतायात में उपलब्ध।
– सूरजमुखी जैसे फूल वाला वर्बीसीना एसिलाइडिस पूर्वी से पश्चिमी राजस्थान में आ गया।
– फाग की जगह मूंगफली की खेती होने से अस्तित्व को खतरा। बीकानेर में इस पौधे से ईंट के भट्टे चलते हैं।
– जैसलमेर के पाली व डीगा गांव में लेस्रासिलिकस घास ग्वार गम व रायड़े के खेती से खत्म होने के कगार पर है। ऐसी मान्यता है कि पहले इस घास के खेत के एक सिरे से थाली फैंकने पर दूसरे सिरे पर लुढ़क कर चली जाती थी।

थार की समृद्ध पौधों की विविधता
– बाजरा, मोठ, मूंग, चंवला, ग्वार, तारामीरा, तिल, बेर, अनार, ग्वारपाठा, टिण्डी, तुंबा, मतीरा व काचरा जैसे प्रजातियां।
– पौधों की कुल 682 प्रजातियां
– पौधों की 6.4 फीसदी प्रजातियां केवल थार रेगिस्तान में
– थार में 131 औषधिय पौधे
– 40 तरह की प्रजातियां सब्जियों की
– 27 प्रजातियों के बीज खाते हैं, 27 के फल-फूल उपयोगी
– 8 प्रजातियों से फाइबर
– 3 प्रजातियों से रस्सी निर्माण
– 7 प्रजातियों से गम व रेजिन

साजी खत्म होने के कगार पर
प्रदेश के उत्तरी हिस्से में चावल सहित अन्य फसलों की खेती होने से साजी का पौधा खतरे में है। इससे भविष्य में बीकानेरी भुजिया व पापड़ का स्वाद बदल सकता है।
– डॉ. जी. सिंह, प्रधान वैज्ञानिक, शुष्क वन अनुसंधान संस्थान (आफरी) जोधपुर

Source: Jodhpur

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