बिलाड़ा (जोधपुर). कृषि संसाधनों की दृष्टि से सरसब्ज बिलाड़ा पंचायत समिति के अधिकांश गांवों के सिंचाई जल में क्षारीय लवणीय तत्वों की मात्रा अधिक होने से मिट्टी में पोषक तत्व नष्ट हो रहे हैं। ऐसे पानी से सफेद खारच की परत जम जाने से पौधों का अंकुरण कम होने लगा है। पंचायत समिति के करीब 45 गांवों में लवणीय तथा 11 गांवों में अत्यधिक लवणीय पानी की मात्रा बढ़ चुकी है।
पाली व नागौर जिले की सीमाओं से लगती बिलाड़ा पंचायत समिति के करीब 68 फीसदी गांवों में खारच व लवणीय मिट्टी पाई जाती है। सिंचाई जल में पोषक तत्वों की कमी होने से मिट्टी के खराब होने का खतरा मंडरा चुका है।
कृषि विभाग की प्रयोगशाला में हो चुकी जांच
कृषि विभाग की मिट्टी परीक्षण प्रयोगशालाओं में बिलाड़ा पंचायत समिति के कई गांवों में सिंचाई जल का परीक्षण किया गया। पानी में पीएच मान, विद्युत चालकता, कैल्शियम, मेग्नीशियम, सोडियम, पोटेशियम, कार्बोनेट, बाइ कार्बोनेट, क्लोराइड और सल्फेट की मात्रा की जांची गई । पानी की जांच के बाद इसे पांच वर्गों में विभक्त किया गया। ‘अ’ वर्ग में सामान्य पानी की मात्रा पाई गई। पंचायत समिति व खेजड़ला के गांवों में ही इस वर्ग का पानी पाया जाता है।
‘ब’ वर्ग में क्षारीय पानी वाले गांवों को चिन्हित किया गया। यह पानी लवारी, खुड़ेचा, रावनियाना गांवों में पाया जाता है। इस पानी से खेत की मिट्टी बंधने लगती है व भूमि पर अधिक समय तक पानी भरा रहने पर मिट्टी की भौतिक दशा धीरे-धीरे खराब होने लगती है।
वर्ग ‘स’ में ऐसे गांवों को चिह्नित किया गया है, जहां पानी में लवणीय तत्वों की मात्रा अधिक पाई जाती है। पंचायत समिति में ऐसे गांवों की संख्या करीब 27 है। इस पानी में घुलनशील लवण अधिक होते हैं। इस पानी से सिंचाई करने से खेतों में सफेद खारच की परत जम जाती है। इससे पौधों को पोषण तत्व व पानी मुश्किल से मिल पाता है। इससे अंकुरण नहीं होने से पौधे पीले पड़ कर मर जाते हैं।
‘द’ वर्ग में ऐसे गांव आते हैं जहां के सिंचाई जल में अत्यधिक लवणीय तत्वों की मात्रा पाई जाती है। ऐसे गांवों की संख्या करीब 20 है। इस प्रकार के पानी में घुलनशील लवण अत्यधिक मात्रा में पाए जाने से सिंचाई भूमि खराब हो जाती है। अंतिम `य’ वर्ग में ऐसे गांव चिह्नित किए गए हैं जहां पानी में क्षारीय व लवणीय दोनों तत्वों की मात्रा अधिक पाई जाती है। इस श्रेणी में क्षेत्र के जसपाली रुनकिया, जाटियावास, बगड़की, जवासिया, सिलारी, चिरढाणी, जालीवाड़ा खुर्द, पीपाड़ शहर व आनावास गांव हैं।
वैज्ञानिकों की सलाह
भूजल वैज्ञानिक ओ.पी. पूनिया का मानना है कि क्षेत्र में फैल रही क्षारीयता को कम करने का एकमात्र उपाय यही है कि बारिश के पानी को खेतों में भरा जाए। इसके लिए खेतों की मेड़ बंदी होनी आवश्यक है। किसानों को बारिश के पानी को कुओं में उतारना होगा। इसके लिए सरकारी योजनाओं के भरोसे न रहकर स्वयंसेवी संस्थाओं को आगे आना चाहिए।
सुखद परिणाम आ चुके हैं
भूजल मंत्रालय के वैज्ञानिकों ने मथानिया क्षेत्र के कई कुओं के जरिए बारिश का पानी जमीन की गहराई में उतारा है, जिससे सुखद परिणाम सामने आए हैं तथा किसानों के कुएं बारह मास पानी देने लगे हैं। इसी विधि का अनुसरण आम किसान कर ले तो जल स्तर ऊंचा उठने के साथ-साथ पानी की क्षारीयता भी कम होगी। क्षेत्रीय कृषि अधिकारी रामकरण बागवान कृषि संगोष्ठी में किसानों को सलाह भी देते हैं।
Source: Jodhpur