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बॉर्डर के ग्रामीणों ने उठाई थी बंदूके और लड़े थे पाकिस्तान से लड़ाई

चौहटन. थार की धरा पर अदम्य शौयज़् और साहस से लबरेज शेरदिल जाँबांजों के किस्से हमारी तवारीख में अमर हैं। 1971 का भारत पाक – युद्ध ऐसी अनेक वीर – गाथाओं का गवाह है, जहाँ थार के रणबाँकुरों नें अपनी जान पर खेलकर राष्ट्र के गौरव भाल को उन्नत किया। आज वे सपूत इस धरा पर नहीं हैं, पर उनकी वीरता और बहादुरी की गाथाएँ इतिहास के पन्नों में अमर है।
1971 के दिसंबर की सदज़् रातों में पश्चिमी सीमां पर सैन्य कायज़्वाही स्थानीय बाशिंदों के लिए कौतुहल का विषय बनी हुई थी। यहाँ के सीमावतीज़् गाँवों में अधिकांश आबादी 1947 व 1965 के दौरान विस्थापित भारतीयों की थी। इनमें से अधिकांश लोग सिंध के चप्पे – चप्पे से वाकिफ थी, जो अब पाकिस्तान का हिस्सा था। भारतीय सेना की कमान ब्रिगेडियर भवानीसिंह जयपुर के हाथ थी। फौज की जोंगा व निशान गाङियों का काफिला शौभाला जैतमाल पहुंचा, जो भारतीय सीमा के सङक सम्पकज़् वाला अँतिम गाँव था।

शोभाला जैतमाल में फौज की अस्थाई छावनी स्थापित हुई, ब्रिगेडियर भवानीसिंह स्वयं नजदीक के गाँवों के निवासियों में से उन चेहरों को ढूँढने निकले कि जो हिंद – सिंध की भौगोलिक परिस्थियों से वाकिफ हों। देशभक्त हों और फौज के कंधे से कंधा मिलाकर युद्ध में अपनी भागीदारी निभा सकें।

ऐसे में उनकी मुलाकात देदूसर के ठाकुर चंदनसिंह सोढा, नवातला जैतमाल के ठाकुर सुलतानसिंह सोढा, लिडियाला के ठाकुर सरदारसिंह सोढा, कल्याणपुरा खारिया के ठाकुर भूरसिंह सोढा से हुई। ये सभी जाने माने घुड़सवार, दिलेर और मजबूत कद – काठी के साथ – साथ फौलादी इरादों के धनी थे। इन चारों से ब्रिगेडियर भवानीसिंह ने सम्पकज़् साधा और फौज के स्थानीय मागज़्दशज़्क बनने का आग्रह किया। चारों सहषज़् भारतमाता के सेवा को उपस्थित हुए और छाछरो फतह होने तक भारतीय फौज की अगुवाई करते रहे। शोभाला से छाछरो के मध्य बङे – बङे बालू रेत के धोरे थे, जहाँ वाहनों का संचालन दुगज़्म था। वहाँ अपने अश्वों पर सवार होकर ये शूरवीर भारतीय फौज के पथ – प्रदशज़्क बने, ये विशाल धोरे आज भी इन वीरों के पराक्रम के मूक गवाह बने हुए हैं।

पाकिस्तान की फौज केलनोर तक आ पहुँची थी और ऊँचे टीलों पर काबिज हो गई थी, हमारी सेना उनके समक्ष तलहटी में थी और इसका लाभ पाकिस्तानी फौज को मिल रहा था। तब चंदनसिंह सोढा, सुलतानसिंह सोढा, सरदारसिंह सोढा और भूरसिंह सोढा नें परिस्थिति को भाँपकर ब्रिगेडियर भवानीसिंह के साथ भारतीय फौज का नेतृत्व किया और घुमावदार रास्तों से होकर पाकिस्तानी फौज को पीछे से घेरकर ऊँचे धोरों पर जाकर मोचाज़् लिया। हमारे पराक्रम के समक्ष पाकिस्तानी सेना टिक नहीं पाई कुछ पाक फौजी बंधक बना दिए गए वहीं कुछ भाग छूटे।

शोभाला, केलनोर व नवापुरा के रास्ते इन बहादुरों की अगुवाई और ब्रिगेडियर भवानीसिंह, कनज़्ल भँडारी के नेतृत्व में भारतीय सेना नें छाछरो फतह किया। पाकिस्तान सीमांतगज़्त जालीला गाँव में पाकिस्तानी फौजियों से तीस राइफलें छीनकर तात्कालीन पुलिस अधीक्षक बाङमेर शांतनु कुमार के समक्ष जमा करवाई।
इसी दरम्यान पाकिस्तान ने इन भारतीय युद्धवीरों को जिंदा या मुदाज़् पकङवाने पर पाकिस्तान सरकार द्वारा इनाम भी घोषित किए गए।

भारत को विजयश्री दिलाने में महत्ती भूमिका अदा करने वाले इन वीर बहादुरों के शौयज़्, पराक्रम और जांबाजी से प्रभावित होकर 10 पैरा कमांडो, ष्ट/ह्र 56 ्रक्कह्र द्वारा प्रशस्ति पत्र, श्रीफल और राइफल देकर बहुमान किया गया। युद्ध समाप्ति के पश्चात राइफलें वापस जमा करवा दी गई, प्रतिवषज़् छाछरो विजय दिवस के अवसर पर 10 पैरा कमांडो द्वारा अपने मुख्यालय पर आयोजित समारोह में ये वीर विशिष्ट अतिथि के तौर पर निमंत्रित किये जाते रहे हैं।

फोटो- केप्शन- चार स्थानीय सहगोगियों के फोटो, प्रशस्ति पत्र

Source: Barmer News

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