बाड़मेर. कोरोना महामारी के बाद बचाव के तरीकों को लेकर युवाओं की मानसिकता में बदलाव आया है, खासकर आयुर्वेद को लेकर ऐसा हो हुआ है। आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति पर युवाओं का भरोसा बढ़ा है, जो पहले एलोपैथी चिकित्सा को तरजीह देते थे, अब आयुर्वेद की राह पर चल पड़े हैं। अब खांसी-जुकाम होने पर आयर्वुेद की दवा ली जा रही है। जब से कोरोना महामारी का दौर शुरू हुआ है, इसकी किसी तरह की दवा नहीं होने से आयर्वुेद में काढ़ा और गिलोय का लोगों ने बचाव और रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के तौर पर शुरू किया। हालांकि शुरूआत में बुजुर्गों का इस तरफ अधिक झुकाव हुआ था, लेकिन अब स्थिति यह है कि युवा वर्ग में भी इम्यूनिटी बढ़ाने में आयर्वुेद के दवाओं का सहारा लिया जा रहा है।
काढ़े के लिए युवाओं की भी हां
महामारी के बाद गिलोय की बिक्री एकदम से बढ़ गई। यह पैकिंग में मिल रही थी, जिसे खासकर युवाओं ने अपनाया और औषधीय पौधे के रूप में भी इसे बगीचे में अब जगह मिल गई। गिलोय के साथ आयुर्वेद का काढ़ा भी काफी बेहतर साबित हो रहा है, पहले जो सर्दी-खांसी-जुकाम होने पर बुजुर्गों को दिया जाता था, अब इसे बच्चों से लेकर युवा भी ले रहे हैं, जो उन्हें तंदुरस्त रखने में काफी फायदेमंद साबित हो रहा है।
आयुर्वेद दवाओं की बिक्री बढ़ी
आयुर्वेद की दवाओं की बिक्री महामारी के बाद ज्यादा बढ़ी है। इसमें खासकर जो दवाएं इम्यून सिस्टम को मजबूत करती है, वे अब बुजुर्ग तो लेते ही है, युवा वर्ग का भी इन दवाओं पर भरोसा बढ़ा है। वे इनका उपयोग भी करने लगे हैं। इसके चलते आयुर्वेद दवाओं की बिक्री में इजाफा हो रहा है।
महामारी के बाद आयुर्वेद के प्रति लोगों का नजरिया बदला
आयुर्वेद की दवाओं का उचित उपयोग करके संक्रमण जैसी बीमारियों से बचा जा सकता है। महामारी के बाद आयुर्वेद के प्रति लोगों का नजरिया बदला है। युवा भी इसमें शामिल है। रोग प्रतिरोधक क्षमता जितनी अच्छी होगी, बीमारियां नजदीक ही नहीं आएगी। इसके लिए आयुर्वेद दवाओं के साथ योग को भी अपनाया जाना चाहिए। योग से मनोबल भी बढ़ता है।
डॉ. नरेंद्र कुमार, वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी, राजकीय आयर्वुेद औषधालय बाड़मेर
Source: Barmer News