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दिलीप दवे बाड़मेर. नौकरी के साथ खेती कर पुलिस हैड कांस्टेबल किशनाराम विश्नोई लोगों को मन में जज्बा रख कुछ करने की सीख दे रहे हैं। पर्यावरण संरक्षण को लेकर पौधे लगाने की धुन एेसी लगी कि कुड़ी गांव के अपने खेत में दो हजार पौधे लगाए। छुट्टी मिलते ही गांव जाते और उनकी देखरेख में लग जाते। परिवार वालों को भी कह कर जाते कि पौधों की देखभाल करना।

एेसे में उनकी मेहनत व जुनून ने खेत में पौधों को पेड़ बना दिया। आज ये पौधे पर्यावरण संरक्षण का संदेश दे रहे हैं तो परिवार को इससे कमाई भी हो रही है। ग्राम पंचायत कुड़ी निवासी और वर्तमान में पुलिस हैड कांस्टेबल पुलिस लाइन बाड़मेर किशनाराम विश्नोई पौधे लगा उनका संरक्षण करने और लोगों को जागरूक का कार्य कर रहे हैं। कुड़ी में जहां सिंचित खेती नहीं हो रही वहां उन्होंने अपने खेत में कू  मट, खेजड़ी, जाल आदि के पौधे लगाए। बरसात में पानी मिला तो पौधे पनपने लगे। इसके बाद परेशानी आई तो उन्होंने सात किमी दूर रेवाड़ा गांव के तालाब से पानी की टंकियां मंगवा कर सिंचाई शुरू की।

पहले तो कम पानी की जरूरत पड़ी पर बाद में अधिक। अभी उनको हर साल ७०-७५ टंकी पानी मंगवाना पड़ता है जिस पर करीब ७० हजार रुपए खर्च हो रहे हैं। बावजूद इसके पेड़ों व हरियाली से लगाव के चलते वे तनख्वाह से रुपए बचा पेड़-पौधों को सींच रहे हैं। उनकी मेहतन का नतीजा है कि जहां गांव में आसपास हरियाली नजर नहीं आती वहां उनके खेत में पेड़ों की कतारें लगी हुई है।

पाटोदी में ड्यूटी के दौरान मिला आइडिया- बतौर किशनाराम १९९२ में वे पाटोदी में कार्यरत थे, जहां कू  मट का पेड़ था। उसको पशुभी नहीं खा रहे थे, क्योंकि उस पर कांटे लगे हुए थे। इस पर उन्होंने अपने खेत की मेड़ पर कू  मट लगाने का निर्णय किया। गुजरात से प्रमाणित बीज मंगवा बोये और देखरेख की तो पौधे लग गए। इसके बाद तो उन्होंने अपने खेत में करीब दो हजार पौधे कू  मट, जाल और खेजड़ी के लगा दिए।

दस साल पहले लगाए पौधे– किशनाराम ने अपने खेत के चारों ओर करीब दस वर्ष कुमट, खेजड़ी व जाल के पौधे लगाए थे जो अब पेड़ बन चुके हैं। लहलहाते ये पेड़ पर्यावरण संरक्षण का संदेश तो दे रही रहे है इनसे चारा, ईंधन मिल रहा है तो कू  मट की फली बेच कर कमाई भी हो रही है। किशनाराम के अनुसार २०१० में उनकी ९५ वर्षीय मां के हाथों पौधा लगा इसकी शुरुआत की थी।

नीबू, बादाम के पौधे भी लगाए- हैड कांस्टेबल किशनाराम ने अपने घर में नीम, नीबू व बादाम पौधे भी लगाए, लेकिन पानी की समस्या के चलते उन्होंने कू  मट के पौधे लगाए।

पेड़-पौधों से बड़ा कोई सुख नहीं- पौधे बड़े होते देखकर मुझे लगता है कि इससे बड़ा सुख कोई नहीं है। आदमी का शरीर 80-100 साल में खत्म हो जाएगा, लेकिन पेड़-पौधे 300-400 साल तक रहते हैं। आजकल जंगल कट रहे हैं तो अवैध खनन बढ़ रहा जिससे पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है। विकास से ज्यादा पर्यावरण का विनाश हो रहा है। अब भी हम नहीं जागे तो तापमान में बढ़ोतरी होगी और ऑक्सीजन की दुकानें खुलेंगी इसलिए जरूरी है कि हम पौधे लगाएं और संरक्षण करें।- हैड कांस्टेबल किशनाराम विश्नोई

पिताजी कर रहे प्रेरित– हम तीनों भाइयों को पिताजी पर्यावरण संरक्षण को लेकर प्रेरित करते हैं। एेसे में हम तीनों पौधों की देखभाल करने के साथ वन्यजीवों की सुरक्षा को लेकर भी कार्य कर रहे हैं। पौधों को पेड़ बनते देख मन को सकू  न होता है कि हमारी मेहनत का फायदा मिल रहा है।- राकेश चांपाणी वन्य जीव संरक्षण प्रेमी कुड़ी।

Source: Barmer News

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