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बाड़मेर. कभी हजारों रुपए का मोल रखने वाले ऊंट की कीमत अब पशुपालकों में दो रुपए भी नहीं रही है। पशुओं को बीमारी से बचाने के लिए टीके के पंजीकरण के लिए लगने वाले 2 रुपए भी ऊंट के लिए खर्च करने से पशुपालक परहेज करते दिखते हैं। रेगिस्तान के जहाज की यह कद्र उसकी खुद के घर में हो रही है।
राज्य पशु घोषित होने के बावजूद संरक्षण तो दूर की बात ऊंट की कद्र भी कम होती जा रही है। अधिकांश पशुमालिकों ने ऊंटों को खुला छोड़ दिया है। ऐसे में ऊंटों के साथ होने वाले हादसों की संख्या में भी लगातार बढ़ोतरी हो रही है।
पंजीयन के लिए लगते हैं 2 रुपए
पशुपालन विभाग की ओर से मुहपका-खुरपका रोग से बचाव के लिए टीके लगाए जाते हैं। लेकिन कई पशुपालक तो ऊंट के टीका लगवाने के लिए केवल पंजीयन के लिए लगने वाले 2 रुपए तक देने से मना कर देते हैं। उनका कहना है कि ऊंट से उनको कोई फायदा नहीं मिल रहा है। ऐसे में उस पर पैसे क्यों खर्च किए जाए। जबकि टीका निशुल्क लगता है।
बीमारियों का बढ़ता खतरा
ऊंटों की संख्या में लगातार कमी आ रही है। कभी प्रदेश में 7 लाख से अधिक संख्या वाले ऊंटों की गिनती 20वीं पशुगणना में 2 लाख13 हजार 739 ही रह गई है। पिछली गणना से इस बार एक लाख से अधिक ऊंट कम हो गए हैं। इस पर टीका नहीं लगने से बीमारियों का खतरा और बढ़ जाता है, जो ऊंटों के अस्तित्व के लिए बड़ा संकट भी साबित हो सकता है।
खुद के घर में ही हो गया बेगाना
रेगिस्तान के जहाज के नाम से प्रसिद्ध ऊंटों की उपयोगिता घटने से अब घर में बेगाने जैसी स्थिति हो गई है। मेलों में अब ऊंटों के खरीददार नहीं आते हैं और ले जाते हैं तो उनकी कीमत बहुत ही कम होती है। वहीं खेती और अन्य घरेलू काम में अब ऊंट गाड़े के स्थान पर वाहनों की भरमार हो गई है। वहीं राज्य पशु होने से इसे प्रदेश के बाहर नहीं ले जा सकते हैं। ऐसे में ऊंटों की अब बेक्रद्री हो रही है।
टीका करता है बीमारियों से बचाव
पशुपालन विभाग के संयुक्त निदेशक डॉ. रतनलाल जीनगर बताते हैं कि टीकाकरण के दौरान विभाग की टीमों को ऊंटों के टीके के लिए केवल पंजीयन के 2 रुपए देने में भी पशुपालक आनाकानी करते हैं। ऐसे में टीम के गांव पहुंचने पर भी ऊंटों का टीकाकरण नहीं हो पाता है। इससे बीमारियों का खतरा तो बढ़ता ही है। टीके लगने से बीमारियों से बचाव हो जाता है।

Source: Barmer News

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