नंदकिशोर सारस्वत
जोधपुर. शीतकालीन प्रवास पर जोधपुर आने वाले पक्षियों की आश्रय स्थली प्राचीन बड़ली तालाब का कैचमेन्ट एरिया तबाह होने से दुष्परिणाम सामने आने लगे हैं। तालाब में वर्षा जल की आवक थमने से जलीय जीव जंतुओं का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है।
बड़ली तालाब पर शीतकाल में हर साल पेलिकन्स, ब्लेक आइबीज, मिडाइन एग्रीट, इंडियर रोलर, प्लोवर, बारटेल्ड गोडविट, पिन्टेल स्नीप, रीवर टेर्न, येलो व वाइट वागटेल, रूम्ड डक, ड्रांगो, रिवर लेफिंग, पर्पन मोरहेन, पाइड किंग फीशर, व्हाइट ब्रेस्टेड वाटर हेन जैसे प्रवासी पक्षी बहुतायत में नजर आते हैं। लेकिन अब तालाब में पानी नहीं होने से इस पर भी संदेह के बादल मंडराने लगे हैं।
अंधाधुंध खनन ने बदली तस्वीर
बड़ली क्षेत्र में अंधाधुंध खनन ने वन संपदा उजाडऩे के साथ वन्यजीवों की कई प्रजातियों को विलुप्ति के कगार पर ला खड़ा किया है । तालाब का केचमेंट एरिया अवैध खनन की चपेट में आकर छिन्न भिन्न हो चुका है। क्षेत्र की परंपरागत नहरें बेलगाम खनन के लालच की भेंट चढ़ चुकी हैं । वाइल्ड लाइफ विशेषज्ञों का कहना है कि बड़ली में बेलगाम खनन नहीं रोका गया तो इसके दुष्परिणाम सभी को भुगतने होंगे ।
सेवाभावी लोग जुटे जलीय जीवों को बचाने में
बड़ली तालाब सूखने के कारण जलीय जीव जंतुओं का जीवन खतरे में पड़ गया है। ऐसे में उनकी रक्षा के लिए विभिन्न सेवा भावी लोग पानी के टैंकरों से तालाब में रहने वाले जलीय जीवों को बचाने में सहयोग कर रहे है। समाजसेवियों के सहयोग से टैंकरों से तालाब में पानी डाला जा रहा है।
इॅको सिस्टम होगा प्रभावित
तालाब में बरसाती पानी की आवक नहीं के बराबर होने से निश्चित तौर पर शीतकाल में आने वाले प्रवासी पक्षियों और खास तौर से वाटर बड्र्स की संख्या पर इसका असर होगा। तालाब में पर्याप्त पानी नहीं आने से पूरा इॅको सिस्टम असंतुलित होता है। इसका प्रभाव जलीय पक्षी के प्रजनन पर भी पड़ता है। तालाब के किनारे एक हजार वर्ष से अधिक प्राचीन भैरुजी का मंदिर है, जहां हर तीसरे साल पुरुषोत्तममास में भोगिशैल परिक्रमा का प्रमुख पड़ाव होता है।
-शरद पुरोहित, पक्षी विशेषज्ञ
Source: Jodhpur