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 NAND KISHORE SARASWAT

जोधपुर. परम्परागत नहरें तबाह होने का खामियाजा उम्मेद सागर को भी भुगतना पड़ रहा है। बूंद-बूंद पानी को सहेज कर रखने की परम्परा वाले जोधपुर में बारिश के पानी को संग्रहित करने के लिए जोधपुर के जिन शासकों ने दूरदर्शिता और सूझबूझ से पानी की नहरें बनाकर अन्य शहरों के लिए मिसाल कायम थी। वह प्राचीन नहरें आज पूरी तरह दुर्दशा की शिकार है।

उम्मेद सागर की नहरों के आसपास जल ग्रहण क्षेत्र में लोगों ने कच्चे स्थाई आवास तक बना डाले हैं, फिर भी सरकारी कारिंदों की नींद नहीं टूट रही है। शहर के बड़े हिस्से के नागरिकों की प्यास बुझाने में सक्षम जलाशय बारिश के पानी से ही भरता है। उम्मेद सागर की नहर ग्राम गेंवा, गुरों का तालाब, चांदना भाखर, सोमानी कॉलेज, चौपासनी शिक्षक कॉलोनी में से गुजरते हुए उम्मेद सागर पहुंचती है। लेकिन भू माफियाओं ने नहर को जगह-जगह से क्षतिग्रस्त कर अतिक्रमण कर लिया। उम्मेद सागर जलाशय की क्षमता कायलाना और तखतसागर दोनों से अधिक है।

फेक्ट फाइल : उम्मेद सागर
348 एमसीएफटी है तालाब की भराव क्षमता

30 फीट गहराई
2.5 किमी लम्बाई-चौड़ाई

38 फीट है तालाब का गेज
1933 में महाराजा उम्मेदसिंह के प्रयास से तालाब को मिला नया जीवन

2 लाख रुपए तालाब के विकास पर निजी कोष से खर्च किए महाराजा उम्मेदसिंह ने

नहरों में सीवरेज लाइनें तो बंद हो

बाईजी का तालाब, गुलाब सागर की नहरों से साफ पानी की आवक को बचपन में देखा था। अब तो नहरें पूरी तरह अतिक्रमण और मलबों से अटी पड़ी हैं। नहरों को ***** कर अतिक्रमण और घरों की सीवरेज लाइनें डाल दी गई है। नहरों में सीवरेज से पर्यावरण के लिए बड़ा खतरा पैदा हो सकता है।
-प्रसन्नपुरी गोस्वामी, पर्यावरणविद एवं अध्यक्ष मेहरानगढ़ पहाड़ी पर्यावरण विकास समिति

Source: Jodhpur

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