NAND KISHORE SARASWAT
जोधपुर. संसाधनों के अभाव से जूझ रहा वनविभाग शिकार की घटनाओं पर पूरी तरह अंकुश लगाने में नाकायाब रहा है। इसका प्रमुख कारण वन्यजीव चौकियों में नफरी और क्षेत्रीय अधिकारियों की कमी, गश्त करने के लिए वाहनों व अन्य संसाधनों का लंबे अर्से से चला आ रहा टोटा है। फिल्म अभिनेता सलमान खान के विश्व भर में चर्चित हरिण शिकार प्रकरण के बाद उम्मीद थी शिकार की घटनाओं पर अंकुश लगेगा लेकिन जोधपुर जिले में शिकार की घटनाओं की रोकथाम के लिए वनविभाग ने कोई ठोस इंतजाम नहीं किए है। जोधपुर जिले के खुले मैदानों में विचरण करने वाले चिंकारे, काले हरिण पहले ही प्राकृतवास की तबाही और चारे पानी के संकट से जूझ रहे है। इसके अलावा समूह के बीच आपसी लड़ाई, खेतों के आसपास हिंसक श्वानों के समूह, प्राकृतवास क्षेत्रों में अंधाधुंध खनन, बढ़ते सड़कों के जाल के कारण वाहन दुर्घटनाओं जैसी समस्याओं के बीच चिंकारों व हरिणों का लगातार शिकार होने से उनके वजूद को खतरा पैदा हो गया है। व
नविभाग में एक दशक में दर्ज शिकार मामले
वर्ष – -मामले दर्ज
2011-53
2012-76
2013-48
2014-15
2015-06
2016-07
2017-13
2018-10
2019-22
2020-21
2021-05
नाकारा वाहन से कैसे रोके शिकार
खुले मैदानों में विचरण करने वाले ब्लेक बक की मौत के कारण एवं विसरा जांच के लिए वनविभाग की कोई टास्क फोर्स अभी तक नहीं है। इसके अलावा शिकार रोकथाम के लिए नियमित गश्त में प्रयुक्त 15 साल पुराने खटारा वाहन नाकारा हो चुके है। यहां तक वाहन की मरम्मत के लिए अब जोधपुर में पाट्र्स तक मिलना मुश्किल हो चुका है। इतना कुछ होने के बावजूद भी विभाग को नए वाहन नहीं मिल पा रहे है।
जागरूकता से ही रोकथाम में सफलता
जिले के वन्यजीव बहुल क्षेत्रों में पर्यावरणप्रेमियों के जागरूक होने से कुछ जगहों पर शिकार की घटनाएं रोकथाम में सफलता मिली है। लेकिन अज्ञात शिकार मामलों में दोषी शिकारी को पकडऩे में वनविभाग हमेशा ही नाकाम रहा है। शिकारियों को पकडऩे के लिए वनकर्मियों के पास अभी तक शिकारियों का पीछा करने वाले वाहन और सिवाय डंडे के कोई अन्य सुरक्षा के हथियार तक नहीं है जबकि शिकारियों के पास बंदूक व धारदार हथियार से बचाव करना मुश्किल हो जाता है। रामनिवास बुधनगर, वॉलीन्टियर, वन्यजीव क्राइम कंट्रोल ब्यूरो जोधपुर
Source: Jodhpur