रतन दवे
बाड़मेर पत्रिका.
सेना की मेडिकल कोर (एएमसी)में एक बकरा सेरेमनी परेड में हिस्सा लेता है जो जूनियर कमिशंड है और इसका नाम है हवलदार मुन्ना..। हवलदार मुन्ना असल में बाड़मेर का बकरा है और यह सेना की मेडिकल कोर की स्थापना के साथ ही उसके साथ है। बकरे की उम्र 12 साल होती है,ऐसे में जरूरत होते ही सेना की मेडिकल कोर नया बकरा बाड़मेर से लाकर उसको प्रशिक्षण देकर हवलदार मुन्ना बना देती है। उत्तरप्रदेश के लखनऊ में अभी यह बकरा है।
सेना की मेडिकल कोर की स्थापना दिवस 30 मार्च को होने वाली सेरेमनी में यह बकरा परेड में भी शामिल किया जाता है। सेना के इतिहास के मुताबिक16 अप्रेल 1951 में ग्वालियर के महाराजा जीवाजीराव सिंधिया ने सेना को एक बकरा दिया था। यह बकरा तब से सेना की ब्रिगेड में शामिल है। बाड़मेरी नस्ल के बकरे की उम्र 12 साल है और तय किया गया कि इसी नस्ल का बकरा जब भी जरूरत होगी बाड़मेर से लाकर सेना की मेडिकल कोर प्रशिक्षित कर शामिल कर लेगी।
हवलदार मुन्ना को संपूर्ण सुविधाएं
सेना ने हवलदार मुन्ना को जूनियर कमिशंड ऑफिसर माना हुआ है। इसके लिए तनख्वाह तो तय नहीं है लेकिन सुविधाएं तमाम दी हुई है। इसका ख्याल रखने के लिए भी सेना के जवान तैनात रहते है। हवलदार मुन्ना प्रशिक्षण से सेना के अधिकारियों के संकेत पर प्रतिक्रियाएं देता है। इसकी नियुक्ति हवलदार के रूप में होती है और इसी रैंक से सेवानिवृत्त भी किया जाता है। काले रंग के इस बकरे को बाड़मेर से जब भी ले जाया जाता है इसके ऊंचे कद और गठिले शरीर को ध्यान में रखा जाता है।
बाड़मेर में है सर्वाधिक बकरे बकरियां
गौरतलब है कि बाड़मेर में भेड़- बकरियां करीब 25 लाख है। यहां से गुजरात-महराष्ट्र के लिए हर महीने करीब 10 करोड़ के बकरे-बकरियां बिकने को पहुंचते है। बाड़मेर का बकरा करीब 5000 रुपए में बिकता है। यहां पशुपालकों के लिए बकरा मण्डी रामसर में स्थापित करने का प्रस्ताव लिया गय है लेकिन अभी कार्यवाही नहीं हुई है। बकरी पालन गरीबों के लिए आर्थिक संबल दे रहा है।
Source: Barmer News