जोधपुर. राजस्थानी भाषा को लेकर आ रही बाधाएं यदि हट जाए तो राजस्थानी संगीत बुलंदी पर पहुंच सकता है। यह कहना है अंतरराष्ट्रीय लोक कलाकार मामे खान लंगा का। अंतराष्ट्रीय सिंगर मामे खान का नया राजस्थानी गीत ‘गौरीÓ हाल ही में रिलीज हुआ है, जिसने बहुत कम समय में लोकप्रियता बटोरी है। मुंबई से जोधपुर पहुंचे मामे खान ने ‘राजस्थान पत्रिकाÓ से बातचीत में कहा कि कोरोनाकाल में सर्वाधिक प्रभावित मनोरंजन उद्योग ही रहा है। राजस्थानी लोक कलाकारों के लिए राजस्थान पर्यटन विभाग विभिन्न जिलों में कार्यक्रम के माध्यम से सहयोग कर रहा है।
गीत में नजर आएगा जड़ों से जुड़ाव
राजस्थानी गीत ‘गौरीÓ खुद मामे खान ने लिखा और संगीत के साथ अभिनय भी किया है। बैक ग्राउण्ड म्यूजिक अमन मलिक ने दिया है। उनके साथ जोधपुर की अदाकारा स्वाति जांगिड़ ने भूमिका निभाई है। मामे खान ने बताया कि गीत का फिल्मांकन उदयपुर में हुआ है जिसकी कम्पोजिशन में जड़ों से जुड़ाव नजर आएगा। गीत में हारमोनियम, ढोलक, मोरचंग, कामायचा, सारंगी आदि लोकवाद्यों का प्रयोग किया है। उन्होंने कहा कि पारंपरिक और लोक धुनों पर आधारित गीत लोगों के काफ ी लोकप्रिय है। उन्होंने कहा कि वे अपने गीतों में राजस्थानी लोक संगीत के साथ यहां की लोक संस्कृति व राजस्थान के ऐतिहासिक स्थलों की सुंदरता को दृश्यों के माध्यम से दिखाने का प्रयास लगातार करते रहे है।
बॉलीवुड में भी पाŸवगायन
लोकगायक व बॉलीवुड के पाŸवगायक मामे खान ने लक बाय चांस, नो वन किल्ड जेसिका, मिज्र्या और सोनचिरैया जैसी कई हिंदी फि ल्मों के लिए भी पाŸव गायन किया है। कोक स्टूडियो में अमित त्रिवेदी के साथ उनका चौधरी ट्रैक का प्रदर्शन काफी लोकप्रिय रहा। जैसलमेर के पास एक छोटे से गांव सत्तो में जन्मे मामे खान मांगनियार के पिता उस्ताद राणा खान भी एक राजस्थानी लोक गायक थे।
फ्यूजन के नाम पर कन्फ्यूजन ना हो
मामे खान ने कहा कि राजस्थान संगीत को ऊपर उठाने के लिए समन्वित प्रयास करने की जरूरत है। उनका कहना था कि लोकधुनों पर आधारित गानों में फ्यूजन होना चाहिए लेकिन फ्यूजन के नाम पर कन्फ्यूजन संगीत जगत के लिए बहुत घातक है। फ्यूजन आपको रातों रात शोहरत तो दिला सकता है लेकिन वह शोहरत लंबे समय तक स्थाई नहीं रहेगी। आटे में नमक चल सकता है लेकिन नमक में आटा घातक है। पारंपरिक लोक संगीत ही वह धुरी है जिसने म्यूजिक को जिंदा रखा है। फोक म्यूजिक का मतलब ही फ्रॉम पीपुल फोर पीपुल है याने हमारा अपना संगीत। मांगणियार समुदाय के कलाकार लोक संगीत वंशानुगत परम्परा से सीखते है और यही परम्परा आज भी बरकरार रखे हुए है।
Source: Jodhpur