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जोधपुर. मारवाड़ की दिवाली के उत्सव को मनाने के उल्लेख शास्त्रों और संदर्भ ग्रंथों में बहुतायत में उपलब्ध है तथा जोधपुर राजघराने की ओर से आयोजित होने वाले त्यौहारों एवं महाराजा के नित्य प्रतिदिन की घटनाओं का लेखा-जोखा रखने वाले महत्वपूर्ण दस्तावेज (हकीकत बही और दरोगा दस्तरी बही) में तत्कालीन समय में जोधपुर राजपरिवार और आमजन की ओर से मनाए जाने वाले दीपावली पर्व के बारे में अनेक महत्वपूर्ण रोचक जानकारियां मिलती है।

14 राणा का पूजन
महाराजा जसवन्तसिंहजी द्वितीय (1873-1895 ई.) के राज्यकाल के उल्लेखों से पता चलता है कि रूप चवदस पर चौदह राणा की पूजा महाराजा के निवास स्थान पर जाकर की जाती थी। इस पूजन में व्यास, पुरोहित, वेदिया आदि उस अवसर पर उपस्थित होते थे। रोशनी के लिए महाराजा की ओर से आदेश जारी होता था तथा किलेदार को चि_ी भेजी जाती थी। किले, राईकेबाग सरकारी दफ्तरों और शहर में रोशनी की व्यवस्था होती थी।

20 दिन पहले से ही हो जाती थी तैयारियां

दीपावली की तैयारी दशहरा से ही शुरू करने के आदेश जारी होते थे। इतिहास की दृष्टि से देखते है तो पता चलता है कि महाराजा विजयसिंह के समय में महाराजा सर्वप्रथम अपने आराध्य देवों की पूजा अर्चना करने दुर्ग से मन्दिर में जाते थे, वे बालकृष्णजी के मन्दिर दर्शन करने के पश्चात दिन का शुभारम्भ करते थे।

दीपावली पर दुश्मन फौजों ने घेर लिया किला
वैसे तो मारवाड़ में दीपावली हमेशा धूम-धाम से मनाने का रिवाज रहा है, परन्तु अनेक बार विपरीत परिस्थितियों के कारण मारवाड़वासी दीपावली का आनन्द नहीं ले पाए थे। महाराजा मानसिंह (1803-1843 ई.) के समय जब जयपुर और बीकानेर की फ ौजों ने 1807-8 ई. में जोधपुर शहर पर अधिकार कर दुर्ग को घेर लिया था, तब नगर और दुर्ग पर दीपावली पर्व नहीं मनाया गया। लेकिन दूसरे वर्ष दीपावली का पर्व बड़े धूम-धाम से मनाया गया था।

दीपावली पर होती थी घुड़दौड़

दीपावली के पर्व पर अनेक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता था तथा महाराजा जसवन्तसिंह के समय सेवाराम को खेल करने के लिए 200 रुपये का इनाम दिया गया। घुड़दौड़ आदि के खेल भी होते थे।

दीपक के लिए पटरानी को आधा तेल
जोधपुर राज्य की दस्तूर बही के अनुसार रियासत काल में नियमानुसार दीयों के लिए तेल कोठार से मिलता था। पटरानी से आधा तेल दूसरी रानियों को तथा रानियों से आधा तेल पड़दायतियों के लिए मिलता था। इसके अलावा कंवर व राजकुमारियों के नाम से भी तेल दिया जाता था। इसी प्रकार खवास, पासवान, मुत्सद्दी, चाकर, ब्राह्मण वगैरह भी कोठार से अपने-अपने आदमी भेजकर तेल प्राप्त करते थे।

दीपावली की रात होता था हींड सींचन

दीपावली की रात जोधपुर के महाराजा व महारानी ‘हींड सींचनÓ करते। ‘हींड सींचनÓ का सामान सेवग व सेवगानी लेकर जाते। इसमें गन्ने के एक छोर पर सेवगानी नई मलमल बांधती। महाराजा गन्ने के डंडे को पकड़कर रखते और महारानी मलमल लपेटे भाग पर धीरे-धीरे तेल उड़ेलती और उस छोर को मशाल की तरह जलाया जाता। तेल की बूंदे जलती हुई निरन्तर नीचे रखी परात में गिरती रहती थी। इस क्रिया से यह माना जाता है कि झड़ती, गलती तेल की बूंदों के साथ ‘हींड सींचनÓ करने वाले व्यक्ति पर आने वाला भार, रोग, शोक, बांधाएं इत्यादि तेल के झरने के समान निर्मूल हो जाएंगे। ‘हींड सींचनÓ का नेग व तेल वारीदार को दिया जाता था।

लघुचित्रों में जोधपुर की दीपावली
अनेक लघुचित्रों में जोधपुर महाराजाओं की ओर से दीपावली पर्व मनाते हुए चित्र मिलते हैं। महाराजा तखत सिंह के राज्यकाल में उनके कलाकारों की ओर से निर्मित चित्रों से संकेत मिलता है कि उनके लंबे शासनकाल (1843-1873) के दौरान महाराजा ने विशेष रूप से दीपावली का आनंद लिया। दरबारी कलाकार दाना की ओर से उनके उत्सवों की पेंटिंग में आतिशबाजी (फूल-जरी, फुलझडिय़ां) और दीवाली का उत्साह झलकता है। एक चित्र महाराजा रामसिंहजी (1749-50 ई.) का है, जिसमें वे मसनद गादी पर बैठे है तथा उनके सामने ठाकुर उन्हें केशर की मनुहार कर रहे हैं। इनके पीछे की ओर के चित्रों में पटाखे विशेषकर कोठियों को छूटते हुए देखा जा सकता है। महाराजा तखतसिंहजी के समय तो दीपावली के पर्व पर शहर की रोशनी देखने के लिए अनेकों बार हाथी और घोड़ों या असवार होकर महाराजा नगर में रोशनी देखने जाया करते थे।

-रिपोर्ट नंदकिशोर सारस्वत,
कंटेंट सहयोग – डॉ. महेन्द्रसिंह तंवर, सहायक निदेशक,महाराजा मानसिंह पुस्तक प्रकाश शोध केन्द्र मेहरानगढ़

Source: Jodhpur

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