भोपालगढ़ (जोधपुर). अबूझ सावों का त्योहार कहे जाने वाले आखातीज का महत्व केवल शादियों से ही नहीं है, बल्कि भोपालगढ़ क्षेत्र सहित समूचे मारवाड़ के किसानों के लिए भी आखातीज का बड़ा महत्व है।
इस दिन किसान अपने-अपने खेतों में पहुंचकर नए साल की खेती-बाड़ी का शुभारंभ करते हैं और इसके लिए किसानों का यह तीन दिवसीय आखातीज का त्योंहार आमतौर पर हाळी अमावस्या से ही शुरू हो जाता है। इस दिन से किसान कृषियंत्रों की पूजा से लेकर खेती के लिए शगुन लेने का काम भी शुरू कर देते हैं।
इसके चलते शनिवार को भी भोपालगढ़ कस्बे सहित क्षेत्र के ग्रामीण इलाकों में हाळी अमावस्या का पर्व श्रद्धापूर्वक मनाया गया और इस दिन किसानों ने घरों में खीच-गळवानी आदि बनाकर नए साल की खेती के शगुन लेने भी शुरू किए। वहीं इस दिन किसानों ने विशेषकर अपने बच्चों के हाथों से खेतों में प्रतीकात्मक हल चलवाकर खेती व अच्छे जमाने के शगुन लिए।
ग्रामीण इलाकों में हाळी अमावस्या के पर्व जहां घरों में खरळ का पूजन किया गया वहीं मंदिरों में भी महिलाओं की भीड़ दिखाई दी। सुबह से ही लोगों द्वारा दान-पुण्य किया तथा लोगों ने घरों में पड़े बाजरा आदि अनाज की पूजा की तथा इनसे शगुन देखकर अगली खेती में सुकाल की कामना भी की।
इस अवसर पर कस्बे के बुजुर्गों ने स्थानीय मंदिरों में सामूहिक रूप से अनाज की पूजा-अर्चना की तथा आगामी मानसून में सुकाल के संबंध में कयास लगाए व शगुन भी लिए गए। इस अवसर पर बुजुर्गों के साथ-साथ युवा व बच्चे भी मौजूद रहे और इन्होंने बुजुर्गों से प्राचीन समय से चली आ रही इस प्रथा के संबंध में जानकारी लेते हुए सुकाल जानने व शगुन लेने के हुनर भी सीखे।
इस दौरान बच्चों द्वारा भी खेत में हल जोते गए। वहीं परंपरागत रीति-रिवाजों को अनवरत जारी रखने के लिए कस्बे में बच्चों द्वारा मिलजुलकर खेतों में हल जोता गया और सुबह से ही टोकरियों की टन-टन की आवाजें व स्थानीय गीतों की धुनें सुनाई दीं।
महिलाओं ने बनाया खीच-गळवाणी
हाळी अमावस्या पर ग्रामीण इलाकों में महिलाओं ने पिछली रात सोने से पहले बाजरी, मूंग, मोठ को बड़े बर्तन में भीगो कर रख दिया और सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर ओखली (खरळ) में उसे छडऩे का काम कर इन सभी खाद्यान्नों को मिलाकर खीच भी बनाया और गुड़ से बनी गळवाणी के साथ इसका भोजन भी किया। साथ ही घरों में ग्वारफली की सब्जी व कढ़ी आदि कई प्रकार के व्यंजन भी बनाए गए।
पुरुषों ने देखे अच्छे जमाने के शगुन
हाळी अमावस्या पर ग्रामीणों व खासकर किसानों ने अपने घर के आंगन व देवस्थानों के आगे बाजरी, मूंग, मोठ इत्यादि की ढेरियां बनाकर इसमें हरे फल व प्याज आदि रखकर इसे आकर्षक रूप से सजाया। वहीं घर के बड़े बुजुर्गों द्वारा इन ढेरियों में से अनाज के कुछ दाने उठाए तथा यह दाने विषम संख्या में (एकी) आने पर उन्होंने इस बार सुकाल की संभावना जताई। इस शगुन प्रक्रिया में ज्यादातर किसानों ने एकी आने की बात कही है और इससे अबकी बार अच्छे जमाने के संकेत मिले हैं।
बच्चों ने खेले बैल-किसान के खेल
हाळी अमावस्या पर भोपालगढ़ क्षेत्र के कई गांवों में एक परंपरा यह भी है, कि रात्रि के समय घोर अंधेरे में खुले मैदान में बच्चे एकत्र होकर बैल-किसान का खेल खेलते हैं। इसमें अधिकतर बच्चे बैल बनकर खेत रूपी मैदान में फसल चरने का उपक्रम करते हैं। वहीं दो-तीन बच्चे किसान बनकर उन्हें ढूंढने की कोशिश करते हैं। खेल के माध्यम से बच्चों के रूप में भावी किसान तैयार करने का प्रयास किया जाता है।
Source: Jodhpur