World Schizophrenia Day: अभिषेक बिस्सा/जोधपुर. विश्व भर में तकरीबन 1 प्रतिशत लोगों को सिजोफ्रेनिया बीमारी हैं। इस बीमारी से ग्रस्त लोगों की संतान में सिजोफ्रेनिया होने की संभावना 10 फीसदी होती है। सामान्य जनता से तकरीबन दस गुना अधिक होती है। ये बीमारी युवावस्था में शुरू हो जाती है। सिजोफ्रेनिया स्पष्ट रूप से सोचने, अपनी भावनाओं को संभालने और दूसरों के साथ उचित व्यवहार करने की क्षमता को प्रभावित करता है। एम्स की बात करें तो हर रोज पांच नए मरीज सामने आते हैं। पांच पुराने मरीज उपचार लेते हैं। पूरे विश्व में मंगलवार को वर्ल्ड सिजोफ्रेनिया डे जागरुकता दिवस के रूप में मनाया जाएगा।
राष्ट्रीय मानसिक सर्वेक्षण 2015-2016 में भारत में लगभग 0.42 प्रतिशत आबादी सिजोफ्रेनिया बीमारी से ग्रस्त पाई गई। सिज़ोफ्रेनिया की व्यापकता लाइफटाइम 1.41 प्रतिशत है। आंकड़ों के अनुसार भारत में लगभग 60-70 लाख लोग किसी ना किसी समय पर इस बीमारी से पीड़ित पाए गए। इस बीमारी के बारे में जागरुकता बहुत कम है, इस कारण उपचार में देरी हो जाती है। दुर्भाग्यवश तकरीबन 75 फीसदी मरीज उचित उपचार नहीं ले पा रहे है। सिजोफ्रेनिया से ग्रस्त मरीजो में बीमारी, जीवनशैली एवं दवाइयों के कारण वजन बढ़ने, मोटापा होने के परिणामस्वरूप डाइबिटिज, दिल की बीमारी (उच्च रक्तचाप बढ़ना, दिल का दौरा), लकवा आदि बीमारियां होने की संभावना काफी बढ़ जाती है।
इस बीमारी के मुख्य लक्षण
– कुछ आवाजें सुनाई देना या चीजे दिखाई देना, जो वास्तव में उपस्थित नहीं हैं, लेकिन, रोगी के लिए पूरी तरह से वास्तविक प्रतीत होती हैं। इसके कारण कई बार रोगी स्वयं से बात करते हुए या अनुचित तरीके से बर्ताव करते हुए पाए जाते हैं।
– किसी तरह के वहम करना जैसे कि ऐसा संदेह होना कि आसपास के लोग उसे नुकसान पहुंचाने की साजिश रच रहे हैं या उसके बारे में बात कर रहे हैं। इस तरह के भ्रम मरीज़ को वास्तविक लगते है, इस कारण उन्हें समझाने से किसी तरह का फायदा नहीं मिलता ।
-कई बार मरीज गुस्सा, हिंसक व्यवहार और अजीब हरकतें करने लगता है।
– मरीज के व्यक्तित्व से कुछ सामान्य गुण चले जाना, जैसे कि अकेले रहना पसंद करना, ख़ुद का ख्याल ठीक से ना रखना, काम या पढ़ाई मे रुचि नहीं रहना, किसी भी चीज़ में आनंद ना आना।
तुरंत लें चिकित्सकों की सलाह
इस बीमारी के इलाज के लिए किसी भी तरह के संकेत या परिवर्तन महसूस होने पर मनोचिकित्सक को तुरंत दिखा लेना चाहिए। इस बीमारी का इलाज मुख्य रूप से दवाइयों (एंटिसाइकोटिक्स) से होता है। मरीज़ को सामाजिक कौशल प्रशिक्षण और व्यावसायिक पुनर्वास की भी आवश्यकता होती है। मरीज को सामाजिक एवं मनोरंजन की गतिविधियो में भाग लेना चाहिए, जिससे उन्हें सुखद अनुभव होता है।
– नरेश नेभिनानी, विभागाध्यक्ष, मनोचिकित्सा विभाग, एम्स जोधपुर
Source: Jodhpur