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चौंकाने वाली बात तो ये है कि मेरी द्वारा करीब 5 साल पहले टैग किए गए पक्षी की जानकारी यहां आकर अखबार की कटिंग में देखने को मिली। ये शब्द वाइल्ड लाइफ साइंस एण्ड कंजर्वेशन सेेंटर मंगोलिया के निदेशक डॉ. निम्बियार बाटबयार ने पत्रिका से खास बातचीत में कहे। साथ ही कुरजां के संरक्षण के लिए कई मुद्दों पर बातचीत की।
डॉ. निम्बियार ने कहा कि अनुसंधान के लिए उनके द्वारा अब तक २०० से ज्यादा पक्षियों में कॉलर से टैग किया जा चुका है तथा ३० से ज्यादा पक्षियों में सैटेलाइट टैग लगाए गए है। उन्होंने बताया कि पक्षियों में टैगिंग करने का मुख्य उद्देश्य पक्षियों के प्रवास स्थलों का पता लगाना, प्रवास स्थलों की दूरी, प्रवसन मार्ग, प्रवास के दौरान खतरों व उनके संरक्षण के उपाय करना होता है। साथ ही पक्षियों की उम्र, जीवनकाल आदि के बारे में भी जानकारियां इकठ्ठा की जाती है।
संरक्षण के लिए हो अनुसंधान-
उनका कहना है प्रवास के दौरान पक्षियों की मौत सबसे बड़ा मुद्दा है। यूं तो मौत के कई अलग-अलग कारण होतेे है, अलग-अलग देशों में अलग-अलग होते है, लेकिन प्रवासी पक्षियों जैसे डेमोसाइल क्रैन आदि के लिए अधिकांश देशों में विद्युत लाइनें सबसे बड़ा खतरा है। खास तौर से हाइ वॉल्टेज लाइनें पक्षियों की जान पर आफत बनी हुई है। उनका कहना है पक्षियों के संरक्षण के लिए आवश्यक स्थानों पर विद्युत लाइनों को लेकर अनुसंधान किया जाना चाहिए तथा जरूरत के अनुसार बदलाव भी होने चाहिए। वर्तमान कई स्थानों पर पक्षियों के संरक्षण के लिए उच्च क्षमता वाली विद्युत लाइनों पर फ्लाई डाइवर्टर भी लगाए गए है। पक्षियों को करंट से बचाने के लिए यह एक सरल उपाय है। साथ ही पक्षियों को फूड पॉइजनिंग से बचाने के लिए प्रयास रहे कि उनका भोजन रसायनों से मुक्त हो। पक्षी विशेषज्ञ डॉ. दाऊलाल बोहरा ने कहा कि एशिया में मंगोलिया व भारत एैसे देश हैए जहां इन पक्षियों का शिकार नहीं होता है तथा लोग इनके संरक्षण के प्रति जागरूक है। सरकार को यहां के स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने के लिए प्रयास करने चाहिए।
कड़ाके की ठण्ड से पहले ही पक्षी चले जाते है प्रवास पर-
उन्होंने बताया कि मंगोलिया में कुरजां बारिश के माह में बाद प्रवास पर निकल जाती है। यहां बारिश के बाद मौसम काफी ठण्डा हो जाता है। रात का तापमान 4 से 0 डिग्री सेल्सियस तथा दिन का तापमान 10 डिग्री सेल्सियस पर आ जाता है। प्रवास के दौरान कुरजां हिमालय से ऊपर उड़ती हुई यहां पंहुचती है। साथ ही बार हीडेड गूज, स्टेपी ईगली भी इसी तरह से प्रवसन करते है।
कुरजां के लिए स्वर्ग है भारत और मंगोलिया-
डॉ. निम्बियार ने बताया कि जिस तरह से कुरजां खीचन में मानव के साथ आबादी क्षेत्रों में विचरण करती है। वैसे ही मंगोलिया में भी कुरजां मानव के साथ खुद को सुरक्षित महसूस करती है। उन्होंने कहा कि कुरजां के लिए भारत और मंगोलिया स्वर्ग है। मंगोलिया में कुरजां का मुख्य भोजन घास, दाने, कीड़े आदि है।(कासं)
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Source: Jodhpur

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